कविता

मोबाइल बना दुश्मन

पहले लिया जाता था प्रभु का “आनंद” नाम,
सुबह, दोपहर, शाम श्रद्धा से मनन आठों याम,
समय बदला, हुए नए-नए अनोखे अविष्कार,
परिवर्तन हुआ लहर चली सब भूले शिक्षा संस्कार ।

चलन में अब सुबह, दोपहर, शाम धुनी एक ही नाम,
दर्शन मोबाइल के बोलबाला बस होते इससे काम,
फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, का आया आज जमाना,
यही पर लोग सारी रिश्तेदारी निभाते, रुठना मनाना ।

बचपन हो गया रूखा बुढ़ापा भी हुआ एकदम सुना,
जवानी का जोश आधुनिकता ने बेरहमी से छीना,
मानसिक रोगों से ग्रस्त होकर अस्वस्थ हुआ मानव,
समय की बर्बादी व खाली दिमाग ने बनाया दानव ।

बिना श्रम के जवानी में आई बुढ़ापे सी थकावट,
स्वास्थ्य दर में आई हर वर्ग में तेजी से गिरावट,
बड़ा विनाशकारी हुआ अति प्रयोग मोबाइल का,
जन्मदाता दुश्मन ये कई समाजिक कुरीतियों का ।

सब अपनी दुनिया में हुए व्यस्त नैतिक मूल्य घटे,
संयुक्त परिवार बिखर गए टुकडों में आज बटे,
मोबाइल की अति ने खड़ी की लाइलाज़ बीमारी,
दिखावे की दुनिया का रंग ढंग हुआ ज्यादा भारी ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु

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