कविता

कट्टर ईमानदार ( व्यंग्य)

होशियार, खबरदार, कट्टर ईमानदार, पधार रहे हैं
ताज़ा-ताजा जमानत पर छूटे हैं, अपनी शेखी, बघार रहे हैं ।।

आओ-आओ सब, घर से निकलो, मुफ्त में, दर्शन का,आनंद उठाओ
बार -बार, न ऐसा, मौका मिलेगा, सिस्टम को खूब, लताड़ रहे हैं।।

हजारों समर्थकों, की भीड़ इनका, लगातार हौसला, बढ़ा रही है
अपने सत्कार से, हो गदगद, विरोधियों को, फटकार रहे हैं।।

इनके ही कुछ और साथी, जो इनसे पहले छूटकर आए
सारी, व्यवस्था की, करें देखभाल, इनके ही, सिपहसालार, रहे हैं ।।

स्वागत में उनके,पटाखों की लड़ी, बेसब्री से इंतजार , कर रही है
कुछ फुस्स पटाखे, गर्दन झुकाए, ललचाई, नज़रों से, निहार रहे हैं।

वीरों की खासी, बड़ी जमात, इनके, पुण्य दीदार, को आकुल है
महीनों बाद, हैं य, जेल से लौटे, आम आदमी के सरदार रहे हैं ।।

अत्यंत सीधे, और भोले -भाले, जनता के हितों, के यह रखवाले
हैं छल कपट से, वे कोसों दूर, फ़ालतू ही,आरोप, स्वीकार रहे हैं

बेहयाई और, बेशर्मी की जो, मोटी चादर, ओढ़ रखी थी
थोड़ी सी जरा नीचे क्या सरकी, अब यह ख़ुद को, धिक्कार रहे हैं

होशियार, खबरदार, कट्टर ईमानदार, पधार रहे हैं
ताज़ा -ताजा , ज़मानत पर छूटे हैं, अपनी शेखी, बघार रहे हैं।।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई