वो सदाबहार वृक्ष
धूर्तों तना या पेड़ तो
बार बार काटते आये हो,
उसी पेड़ के फल खाये हो,
शायद जड़ काटने की तुम्हारी औकात नहीं,
जड़ के रहते तुम्हारी बनेगी बात नहीं,
क्योंकि वो इतनी गहरी है कि
तुम्हारा साम,दाम,दंड,भेद काम नहीं आया,
कुदरत के दुश्मनों को
कुदरत ने मजबूत नहीं बनाया,
हर तरह के हथियारों से लैस रहे हो,
हो चुके इतने उदंड कि कभी
बंधन में नहीं रहे हो,
लकड़ी काटने के लिए
लकड़ी का ही सहयोग लेते हो,
कभी बिना सहयोग लिए काट कर देखो,
आपसे होगा नहीं फिर भी कहूंगा
षड़यंत्र छोड़ प्यार बांट कर देखो,
बात काटने ही हो रही थी कि
उन सदाबहार पेड़ों का अस्तित्व
कभी भी मिटा नहीं पाओगे,
कुछ अंतराल के बाद वो फिर उठेगा,
और ऐसा उठेगा कि
तुम्हें भी बेमन से गर्व करना पड़ेगा,
पर चिंता मत करना
वो पेड़ कभी अपना स्वभाव नहीं बदलता,
वो पूरी दुनिया को छांव देता आया है
तुम्हें भी देगा,
लिख कर रख लो
उन्हीं पेड़ों के नीचे तुम्हें सुकून ढूंढना पड़ेगा,
जिसकी बानगी सुदूर दिखाये हो।
— राजेन्द्र लाहिरी