कविता

श्राद्ध कर्म पावन अनुभूति

अपने पितरों का श्रद्धापूर्वक स्नेह संग तुम मान-सम्मान करो,
सोलह श्राद्ध अश्विन मास के श्रेष्ठतम फलदाई ये भान करो,
ब्राह्मणों को भोजन करा दक्षिणा दें भक्तिपूर्वक पिंडदान करो,
पितरों हेतू गायों, कौवों, कुत्तों को अन्न दान महान करो ।

श्राद्ध मुक्ति-संतुष्टि का प्रयोजन तर्पण-अर्पण अनुष्ठान है ,
पितर धरती पर कल्याणकारी प्रभु का “आनंद” प्रसाद है,
अंशी उनके हम, उनका अर्जित किया दिव्य पुण्य प्रताप है,
वो अनमोल विरासत हमारी शुभता, रक्षक, आशीर्वाद है ।

गर पीड़ित किया जीवित समय तो ये ढकोसला मत दिखाओ,
क्षमा याचना कर पितरों से उनकी मानसिक व्याधि को मिटाओ,
अपने कर्म बंधनों में सत्यता, सात्विकता, शुद्ध भाव जगाओ,
आडंबरों का चोला उतारो, झूठी शान का रोना मत गाओ ।

यदि भाव समर्पण तुम्हारा सच्चा होगा, पितर खुश हो जाएंगे,
पितर योनि से मुक्ति पाकर तुम्हें ढेरों आशीर्वाद दे जाएंगे,
पुनः रिश्तों को सुधारने का मौका है सौभाग्य जाग जाएंगे,
ऋण चुका पितरों का संचित कर्मों से निवृत्तरिक्त हो जाएंगे ।

आस रखते पितर अपने वंशजों से उन्हें निराश नहीं करो,
उनके संस्कारों, आदर्शों, को अपना तर्पण कर आभार करो,
जीवन में सद्गुण सम्पन्न, प्रसन्नचित्त उत्कृष्ट सद्व्यवहार करों,
विश्वास रख सांस्कृतिक परम्पराओं का नियमबद्ध परिपालन करों ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु

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