कविता – सब्र की ताकत
नज़रों से देखा जाए तो,
शराफ़त है यह सब्र।
क्षणभंगुर है तो,
फिर क्यों लगता है डर।
सब्र की ताकत से,
रब करीब आ जाते हैं।
नवीन चेतना को यही,
हमेशा करीब लाते हैं।
तकलीफों के समन्दर में,
हदें पार हो जाती है।
इस दरम्यान भी,
लफ्ज़ खामोश रहती है।
यह एक हुनर है,
जमाना इसकी कद्र करती है।
नजदिकियां बढ़ाने में,
अक्सर काफी करीब रहती है।
समन्दर की गहराई से,
हम इसकी ताकत समझते हैं।
खुशियां बेशूमार मिले,
इस की बरक्कत कहते हैं।
हमेशा आगे बढ़ने में,
सब्र इम्तहान लेती है।
खबरों को नाखुश होने पर भी,
इसे खिदमत की,
ताकत दिखाई देती है।
आज़ तक किसी को,
किसी की उलझनों का,
कोई असर नहीं होता है।
सब्र है तो दुनिया में,
इस तालीमी से लबालब लोगों को,
दूसरों की तकलीफ़ पर,
अक्सर नज़र होता है।
— डॉ. अशोक, पटना