कविता

लम्हें

हम और तुम 

वक़्त के साथ चलते चलते 

उम्रदराज हो गए 

तुम और मैं दोनों 

बाल बच्चें दार वाले हो गए 

आज निकाली अलमारी से 

पढ़ने को तुम्हारी दी हुई वो किताब 

झाँक रहा था उसमें एक गुलाब 

जो तुमनें दिया था 

जिसे मैंने सम्भाल कर रख लिया था 

तुम्हारी दी हुई उसी किताब में 

वैसा ही तरोताज़ा था वो गुलाब 

जैसे आज ही दिया हो तुमनें 

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020