कविता

बात बन जाये

साँसों की डोर
अब
टूट जाये
तो
बात बन जाये…
तेरी
इन यादों से
मेरा पीछा
छूट जाये
तो
बात बन जाये…

दिल की टीस
कम नहीं
हो रही है,
किस्मत मेरी
ना जाने
कहाँ सो रही है
सहन
नहीं होता
अब दर्द मुझसे
साँस मेरी
घुट जाये
तो
बात बन जाये…

सब कुछ
छोड़ दिया
तुम्हारे वास्ते
अब तुम भी
चल दिये
अलग रास्ते
तुम मेरी थी
बुलबुला ये
भ्रम का
फुट जाये
तो
बात बन जाये…

“विकास”
जी लिया
जिंदगी अपनी
अब तो उसे
भैरवनाथ की
माला है जपनी
मर रहा है
वो बेचारा
पल पल हर पल
पीने को
मिल कालकूट जाये
तो
बात बन जाये….

— डॉ. विकास

डॉ, विकास शर्मा

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