गीतिका/ग़ज़ल

पते सारे जिनके जलाने चले थे

भूले नही जो भुलाने चले थे
पते सारे जिनके जलाने चले थे
कई रातों से सोये अरमां नही हैं
जिनको शब में सुलाने चले थे

कभी सुबुक्सरी सताने है लगती
वफा कभी कुछ बताने है लगती
नजर डबडबायी बहुत शोर करती
आलम हम जिनको सुनाने चले थे

निशा नूर का यहां नाता पूराना
मुश्किल बड़ा संग इनका छुड़ाना
फानूस था हिज्र के ‘‘राज’’ का जो
बस! आग उसी में लगाने चले थे

राज कुमार तिवारी ‘‘राज’’
बाराबंकी उ0प्र0

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782