कविता

खुशियों की भरपाई करिए

स्नेह-धागे और स्नेहिल संवाद-सुई से,
जिंदगी की फटी चादर की तुरपाई करिए,
मुस्कुराने की कला से उधड़ते रिश्तों में,
बस इसी तरह खुशियों की भरपाई करिए।

फिर करूंगा-सोचूंगा-देखूंगा आलस्य है,
आलस्य की इस आदत को अभी छोड़िए,
जिंदगी की फटी चादर फेंक सकते नहीं,
समय रहते इसको सही जतन से जोड़िए।

जीवन में कभी निराश नहीं होना चाहिए,
कमजोर हमारा वक्त ही होता है, हम नहीं,
साहस से चुनौती को स्वीकारना अच्छा,
सफलता नहीं पा सके तो कोई गम नहीं।

अपनी पसंद के लिए समय अवश्य निकालें,
अच्छे रिश्तों को भलीभांति स्नेह से संभालें,
खुद में हो दृढ़ विश्वास और प्रेम का उजास,
खुश रहकर मानव-जीवन का लाभ उठालें।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244