खुशियों की भरपाई करिए
स्नेह-धागे और स्नेहिल संवाद-सुई से,
जिंदगी की फटी चादर की तुरपाई करिए,
मुस्कुराने की कला से उधड़ते रिश्तों में,
बस इसी तरह खुशियों की भरपाई करिए।
फिर करूंगा-सोचूंगा-देखूंगा आलस्य है,
आलस्य की इस आदत को अभी छोड़िए,
जिंदगी की फटी चादर फेंक सकते नहीं,
समय रहते इसको सही जतन से जोड़िए।
जीवन में कभी निराश नहीं होना चाहिए,
कमजोर हमारा वक्त ही होता है, हम नहीं,
साहस से चुनौती को स्वीकारना अच्छा,
सफलता नहीं पा सके तो कोई गम नहीं।
अपनी पसंद के लिए समय अवश्य निकालें,
अच्छे रिश्तों को भलीभांति स्नेह से संभालें,
खुद में हो दृढ़ विश्वास और प्रेम का उजास,
खुश रहकर मानव-जीवन का लाभ उठालें।
— लीला तिवानी