क्षणिका

अजनबी

अजनबी से बैठे हैं 

निशब्द चुपचाप 

आपस में हम सब

एक घर एक छत के ही नीचे 

अपने हाथों में लिए मोबाइल 

आँखों को उसमें टिकाये 

उसे देख ही हँस और मुस्कुरा लेते हैं

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020