कविता

कविता

रात के आगोश में
सिर्फ खामोशी नहीं लेटती है।
उदासी भी लेती है अंगड़ाइयां
जैसी काली परछाइयां
अवसाद अपना बिस्तर जमा लेता है।
मन के कमरे में
और कब्ज़ा लेता है पूरा आशियाना।।
अधूरे ख्वाब की मजार
आंखो में भर जाती है।।
आंसुओ से कभी कभी धुलती है।।
और भविष्य की चिंता
शिखर पहुंचती है।।
अंततः नींद को चुरा लेती है।।
विचलित हृदय भटकता है
एकांत शांत माहौल में
और विचारों का तूफान जैसे
समा गया हो होल में।।
आखिर यह खामोशी
जीवन के एकाकीपन को
और जीवंत करती है।।
कभी कभी जीवन का अंत करती है

— निशा अविरल

निशा 'अविरल'

जन्म स्थान:- पानतलाई हरदा ( मध्य प्रदेश) जन्म वर्ष :- 13/10/1993 शिक्षा:- MA HINDI वर्तमान कार्य :- फ्रीलांस कंटेंट writer प्रकाशित कृतियाँ :- फनकार नवोदय के ( सांझा काव्य संग्रह) संपर्क सूत्र :9131230020 E-mail: [email protected]