कुण्डली/छंद

दोहे 

मां के आँचल में मिले, माया, स्नेह, दुलार।। 

मीठी लोरी मात की, मनभावन झंकार।।

पात शाख से हो विलग , मिले नहीं आधार। 

स्नेह पुष्प खिलता जहां, सदा सुखी परिवार।।

तोल मोल कर बोलिये, शब्द बड़े अनमोल।

एक शब्द अभिशाप सा, दूजा हर्ष कलोल।।

स्वयं सिध्द बनिये सदा, रहे नहीं आधीन।

फल की चिंता मत करो, वर्तन हो शालीन।।

धारा जीवन दायिनी, भूलो मत उपकार। 

नदियां जल मीठा रहे, पाए सुख संसार।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८