कविता

प्रेयसी

जरूरी तो नहींऐसा भी हो की हर पुरुष हर एक जैसा हो वो सिर्फ एक को नहीं हर एक को निहारता होजैसे आसमान से बूंदें हर किसी को मिल ही जाती है एक पुरुष चंचल है तोवो पत्थर की तरह कठोर भीहर किसी को निहारना एक उद्देश्य से यदि आपकी मनोदशा ऐसी है तो ग़लत सोच है क्योंकि पुरुष मशीन कीतरह कमाता है बिना थके चलता जा रहा है आजकल यद्यपि आप ने देखा ही नहीं उन दुर्लभ पुरूषों कोजिन्होंने देखा तो बस एक स्त्री को वही उनकी पसंदीदा स्त्री , प्रेयसी , प्रेमिका , संगनी बन गईकविता,शायरी , निबंध बन गई तत्पश्चात उन्होंने नजर उठा निहारा ही नहीं किसी अन्य परस्त्री को !रस्ते में अंतिम तकउनकी प्रेयसी उनके साथ रहे न रहे, कदाचित नहीं दे सके वो हृदय में किसी अन्य को वो स्थान, जहाँ स्थाई बिठा रक्खा था अपने चित चितवन में उन्हें जिन्होंने सदैव जीवित रक्खा अपनी स्मृतियों में, यादों में उन्हेंऐसे पुरुष यदि एक बार किसी को स्पर्श कर ले तो नहीं लालसा होती उन्हें किसी भी स्त्री के स्पर्श की क्यूंकि वो दुर्लभ होते है जैसे कि होती है मृगकस्तूरीभीड़ बहुत है लेकिन वो आज भी हैं हाँ मैने देखा है ऐसे कुछ पुरूषों को जिन्होंने आज भी जीवित रक्खा है प्रेम के सही मायनों कोबन सको तो बनना ऐसा ही दुर्लभ पुरुष ताकि जिसके भी जीवन में प्रवेश करो वो गर्व से कहे हाँ मैं तुम्हारी प्रिय सौभाग्यशाली प्रेयसी हूँ….प्रवीण माटी

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733