कविता

तन्हा जीवन

तन्हाई में कभी चुपके से आना
मन मष्तिष्क पे दस्तक दे जाना
दिल की हवेली का खोलुँ मैं द्बार
मुस्कुरा कर समां जाना दिल में हमार

तेरी छाया बगिया में मैंने था देखा
प्यार की जहाँ खींच दी थी रेखा
मैं पागल तेरा ही था एक दीवाना
जहाँ हम दोनों गाये थे प्यार तराणा

आओ नदिया की तुम्हें सैर करा दूँ
खिली कलियों से तेरी परिचय करा दूँ
जीने की तुँने मेरी एक किरण दिखाई
कब कहा मैं तुँ है एक अनजान पराई

जन्म जन्म का साथी खुदा भी माना
क्या कर लेगा ये जालिम जमाना
सात जनमों का है तेरा मेरा नाता
हर जनम में मैं तुम को है पाता

तेरे मन मंदिर का मैं हूँ तेरा देवा
जब भी धरा पे आया तुम्हें पावा
जैसे खुशबू संग है सरताज गुलाब
दो जिस्म जान एक हैं जनाब

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088

Leave a Reply