ग़ज़ल
यह जिस्म कभी बूढा ना होता।
तेरा प्यार अधूरा ना होता।
सूरज चांद सितारे ना होते,
गगन कभी भी पूरा ना होता।
कौन सुहागन के अर्थ बताता,
कंगन, चूड़ी, चूड़ा ना होता।
चुम्मन की फिर पहचान ना होती,
शक्कर, मिशरी, कूजा ना होता।
बालम मंज़िल मुशकल ही मिलती,
रस्ता कोई दूजा ना होता।
— बलविन्दर ‘बालम’