जमा परत पिघलने वाला नहीं
उसे तीव्र लालसा हो रही थी
कि एक बार पाप जरूर धुल जाए,
किस्मत के दरवाजे और खुल जाए,
लार टपकती है देख दूसरों की संपत्ति,
बद्दुआ सजी मुंह उनके घर लाने विपत्ति,
दूसरों को देने की बात पर ही
दिल पर लोटने लगता है सांप,
देना कभी सोचा ही नहीं
भले मांगने आ जाए खुद का बाप,
फुर्सत जान मुझ पर डाला निगाह ए गिद्ध,
साथ चलने की करने लगा जिद्द,
मैंने कहा भाई मैंने कोई पाप नहीं किया
तो मेरा जाना बेकार है,
कटाना तुझे है और तू जाने को बेकरार है,
वह गुस्साया कि मैंने उसे पापी कहा है,
मैंने कहा भाई मुझे तुझसे,तुम्हारे प्रयोजन से
कोई मतलब नहीं है,
पाप कटाओ या पुण्य कमाओ
मामला मुझसे संबद्ध नहीं है,
आखिर वो गया
ऐसा करना नहीं है काम नया,
कोई कितनों भी स्नान कर ले
मस्तिष्क पर जमा परत पिघलने वाला नहीं है।
— राजेन्द्र लाहिरी