डिफॉल्ट

मातु शारदे

मातु शारदे मैया मेरी, देती मन को जान।
शीश हाथ पर उसका मेरे, बढ़ता मेरा ज्ञान।।

सच्चाई के पथ चलने की, देती हमको सीख।
निज के श्रम से सब मिलता है, दे ना कोई भीख।
मानवता का पथ ही आगे, करता नव निर्माण।
सुख सुविधाएँ बढ़ती जाती, होता सबका त्राण।

माना मैं मूरख अज्ञानी, इसमें क्या है दोष।
कभी कहाँ मुझको आता है, इस पर कोई रोष।
दूर करेगी हर दुविधा माँ, इसका मुझको बोध।
जिसको भी चिंता करना है, वो ही कर लें शोध।।

ज्ञान ज्योति माँ सदा जलाती, नित नित देती ज्ञान।
समझ रही है मैया मेरी, मैं मूरख अंजान।
कालिदास मूरख को भी तो, बना दिया विद्वान ।
घटा मान विद्योतमा का, सभी रहे हैं जान।।

दंभी रावण की मति फेरी, उसका हुआ विनाश।
और विभीषण को मैया पर, था पूरा विश्वास।
कंस और श्री कृष्ण कथा को, पढ़े सभी हैं आप।
जिसके जैसे कृत्य रहेंगे, बनें पुण्य या पाप।।

कृपा मातु की सदा हमारे, रहती हरदम साथ।
और थामकर रखती माता, हरदम मेरा हाथ।
मैं क्या मांगूँ माँ है मेरी, खुद रखती है ध्यान।
उसे पता है बच्चा मेरा, बिल्कुल है अज्ञान ।।

माँ तेरा वंदन करता हूँ, भूल न जाना आप।
शीश झुकाकर विनय करूँ मैं, दूर रहूँ हर पाप।
चरण धूलि तेरी माँ मेरे, रहे चमकता शीश।
बस इतनी सी मातु कृपा हो, माँगू मैं बख्शीश।।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

Leave a Reply