कहानी – क्या नाम दूं
मनोज फोन पर बात करते हुए — आप चिंता न करें मैं हू¡ ना । आपको जो भी काम हो किसी प्रकार कि तकलीफ़ हो किसी भी वक्त आप बेझिझक मुझे कह देना। मैं जो मदद् बन सकी करूंगा। अरे आप रोईये मत पहले आप चुप हो जाइए। आप कभी भी मुझे फोन कर लिजियेगा। बस अभी आप आराम से सो जाइये । सुबह बात करता हू¡ मैं आपसे । गुड्ड नाईट बॉय।
वंदना मनोज कि पत्नी— कौन है इतनी रात को? किससे बात कर रहे थे आप? कौन और क्यों रो रहा था कोई फोन पर? क्या हुआ? बताओ मुझे
मनोज– अरे ओर कोई ओर, मेरी कस्टमर थी। मुझसे माल लेके जाती है और अपनी दुकान पर बेचती है । बेचारी बहुत परेशान है उसका पति निकम्मा और अय्याश है । आज भी वो अभी तक घर नहीं आया था तो मेरी कस्टमर मुझे फोन की ओर रो- रो के बुरा हाल था उसका। बेचारी! इतनी मेहनत करती और पति को भी पाल रही जैसे।
वंदना– नाम क्या है आपकी कस्टमर का ?
मनोज– ऋतु नाम है।
वंदना — उसका पति कुछ तो करता ही होगा ना?
मनोज– निकम्मा है निकम्मा। मॉं-बाप का एक ही बेटा है। प्रापर्टी बहुत है । इसलिए शायद लाड़ मे पला और बिगड़ गया।
वंदना– क्या आप कभी अपनी कस्टमर के पति से मिले हो?
मनोज– हॉं बहुत बार दुकान पर साथ में आता माल लेने कार में ऋतु को लेकर।
वंदना– अच्छा! तो क्या आपने अपनी आंखों से देखा उसे अय्याशी करते हुए या औरतों से बातचीत करते हुए। अरे ऐसा तो होगा नहीं कि वो आकर पॉंच मिनट में चला जाता होगा अपनी बीवी को छोड़कर।
मनोज– नहीं साथ में ही रहता जब तक माल लेती ऋतु साथ ही बैठा रहता और कार में माल भी भरता खुद। जब तक मेरे सामने रहता तब तक तो ऐसा कुछ भी नहीं देखा या सुना किसी ओर से बात करते हुए मैंने उसको।
वंदना– अरे वाह! तो आप ने बाहर किसी से ऋतु के पति के बारे मे सुना बुरा आपने?
मनोज– नहीं।
वंदना– क्या अभी वो आपसे बात कर रही थी, रो रही थी । तो क्या आपको फोन पर दिख गया कि सच मे उसका पति घर पर नहीं है ?
मनोज– नहीं।
वंदना– तो आप कैसे अंदाजा लगा सकते कि वो सही में बहुत दुखियारी है? सही में उसका पति घर पर नहीं है और जो ऋतु बोल रही वो बिल्कुल सच बोल रही है? जब कोई सबूत नहीं है तो आप किस आधार पर विश्वास करके उसे रात- बेरात फोन पर तसल्ली दे रहे। हो सकता उसका पति उसके बताए अनुसार ठीक विपरित हो ।
मनोज– मतलब ?
वंदना– मतलब ये की उसका पति उसको भरपूर सहयोग देता, माल भी लेने साथ में आता अपनी पत्नी के और ये औरत ही अय्याश हो इसे जबरदस्ती का खुद को बेचारी बता कर मर्दों कि हमदर्दी लूटने की आदत हो या ये भी हो सकता है कि इसका पति और ये मिले हुए हों और दोनों मिलकर आपको बेवकूफ बना रहे हों? देखो व्यवसाय का व्यवहार एक तरफ़ और ये फालतू के कस्टमरों कि व्यक्तिगत बातें एक तरफ । आप व्यवसाय में व्यवहार कुशल बनें न की ऋतु जैसी औरतों कि तरफदारी कर हमदर्द बनें उनके।
मनोज– अरे तुम तो कुछ ज्यादा ही सोच रही रूपा बहुत परेशान है। अगर थोड़ी देर बात करके उसे तसल्ली मिलती है तो बुराई क्या है?
वंदना– आपके अच्छे के लिये बोल रही । ऋतु जैसी औरतें मर्दों कि हमदर्दी लूटने के लिये किसी भी हद तक गिर सकती है।
वंदना रोज मनोज को समझाती परंतु मनोज रोज रूपा से बात कर उसे तसल्ली देता और ऋतु खुद को बेचारी बताती। यही सिलसिला चलता रहा । और वो भी एक दिन आया जब गलत व अति महसूस होने पर वंदना ने अपने घर के बड़े सदस्यों को यह बात बताई। जब बड़ों ने मनोज से बात की तो मनोज ने वेदना कि उम्मीद के भी बाहर हद पार करते हुए वेदना को ही अपने बड़ों के सामने गलत करार दिया और कहा कि इसके दिमाग पर असर आ रहा है इसे साइकोलॉजिस्ट को दिखाने की जरूरत है। परंतु मनोज अपनी धर्मपत्नी के खिलाफ सबूत न दे सका ।
बल्कि वंदना ने पूरे सबूत रखें बड़ों के सामने। धीरे-धीरे कस्टमर मनोज को अपनी सगी और अपने परिवार के लोग जो विरोध कर रहे थे वो दुश्मन लगने लगे यहॉं तक की उसे अपने अभिभावक भी । देखते ही देखते ऋतु नाम कि एक औरत अपने इतने स्मार्ट पति जो कि बहुत ही सुन्दर व साथ में करोड़ों कि सम्पत्ति का एक लौता मालिक भी है उसे धोखा देते हुए किस तरह दीमक की तरह निगल गई हंसते खेलते वंदना के परिवार को की उसके ही पति के दिल में उसके ही खिलाफ जहर भर दिया।
आज मनोज कि अति समझदारी उसी पर भारी पड़ गयी। आज उसके परिवार के सदस्य जो उससे बेपनाह मोहब्बत करते थे उसी से कटे-कटे से रहते हैं। आज वंदना को भी पति के घर आने-जाने का कोई फर्क नहीं पड़ता । वो घर आए या न आए, खाना खाए या न खाए कोई फर्क नहीं पड़ता । क्यों कि जिस पति की के प्रति वफादारी निभाई जिसको इतना प्यार करते देख वंदना की सास तक उसे मनोज की दीवानी कहती थी । उसी मनोज ने आज एक पराई शादीशुदा औरत के लिये अपनी पत्नी को ही ग़लत बोला। यही होता है मनोज जैसे मर्दों के साथ, बड़ा खुद को समझदार बता दूसरों के हमदर्द बनें फिरते ऐसे मर्द ही दुनिया के सबसे बड़े मूर्ख इंसा है मेरी नज़रों में। वो एक कहावत है ना अति करो तो अतिशयोक्ति होती वही हुआ ।
जिस-जिस ने मनोज से ऋतु के खिलाफ कोई बात की, मनोज को समझाया मनोज को वो ही अपना दुश्मन नज़र आने लगा । धीरे-धीरे मनोज उन दोस्तों के समझाने पर भी उनसे दूर हो गया जिनके एक फोन पर वो उनके पास चला जाता था। रिश्तेदार भी उसे अपने ही दुश्मन लगे क्यों कि वो अपने घर वालों के लिए बुरा सुन सकता था बाहर वालों से , मगर उस बाहर वाली पराई औरत जो की किसी कि पत्नी थी साथ-साथ एक जवान बेटी की मॉं भी है । उसके खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकता था।
आज मनोज और ऋतु के चर्चे पूरी रिश्तेदारों में फ़ैल चुके हैं परंतु अब ऋतु ही नहीं मनोज भी रूपा अनुसार बताए उसके पति की तरह अय्याश मर्द की भूमिका में नजर आ रहा था जब कि ऋतु का पति नहीं बल्कि ऋतु स्वयं अय्याश है। उसे मर्दों को फंसाकर अपना काम निकालने व पैसों, प्रापर्टी का लालच आदि बुराईयों ने घेर रखा था।
सच ऐसी एक नहीं अनेक ऋतु जैसी महिलाएं हैं जो अपने घर कि निजी बातें गैरों से साझा कर हमदर्दी बटोरती मर्दों की और उजाड़ देती दूसरों के घर , ऐसी औरतें किसी की सगी नहीं होती। किसी मर्द को उसके ही परिवार के खिलाफ भड़काकर । अपना अमन-चैन तलाशती क्या नाम दूं ऐसी औरतों को? मन में एक शब्द है नाम है परंतु … मौन
— वीना आडवानी तन्वी