बाकी बहुत सवाल हैं
उत्तर खोज रहें है
पल-पल,बाकी बहुत सवाल हैं
कुछ अच्छे कुछ बहुत बुरे कुछ, धर्म अधर्म बवाल हैं
क्यों मर्यादा बिखर रही है,क्यों इतनी बेहाली है
क्यों बेकारी क्यों बेज़ारी,क्यों रोती खुशहाली है
उत्तर खोज नहीं पाते हैं,हाल हुआ बेहाल है
उत्तर खोज रहें हैं पल-पल बाकी बहुत सवाल हैं
मजदूरों की दीन दशा है, दाल नमक तरसे हैं
भीख मांगते चौराहों पर नंगे पाँव भागते हैं
कामुकता भिक्षावृत्ति का चहुँ दिस फैला जाल है
उत्तर खोज रहें हैं पल पल बाकी बहुत सवाल हैं
नफ़रत भ्र्ष्टाचार जगत में दिन दिन बढ़ता जाता है
पिता पुत्र माता बेटी का,प्रेम नहीं मुस्काता है
मित्र कुमित्र छल रहे जीवन,मन में उठा मलाल है
उत्तर खोज रहें हैं पल-पल बाकी बहुत सवाल हैं
विश्व कर रहा त्राहि त्राहि हैं, युद्ध तबाही लाता है
क्यों कर मानव लोलुपता वश,जग को नर्क बनाता है?
मनुज मनुज के ऊपर ताने, रहता नई तमाल है
उत्तर खोज रहें हैं पल-पल बाकी बहुत सवाल हैं
सृष्टि की सर्जना शक्ति का, मान नहीं क्यों रह पाता
अनुत्तारित मन तड़पा करता,क्यों इतना दुःख गहराता
अस्मत लूट विचरते नर पशु कैसा यह जंजाल है
उत्तर खोज रहें हैं पल-पल बाकी बहुत सवाल हैं
वो किताब न बनी अभी तक,जो सबका हल दे पाती
करुणा कलित हृदय में कोई सुखद रागिनी भर जाती
पापाचार मिटे इस जग से, “मृदुल” कहाँ वह काल है
उत्तर खोज रहें हैं पल-पल बाकी बहुत सवाल हैं
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”