कविता
हम इंसान भी कितने नादान होते हैं ,
जो पास नहीं उसको ढूंढते रहते हैं ,
और जो पास है उसको पूछते तक नहीं।
हम इंसान भी कितने नादान होते,
हर एक कीमती वस्तु का मूल्य नहीं समझते
और देते महत्व उसको जिसका कोई मूल्य ही नहीं
हम इंसान भी कितने नासमझ होते
जो अच्छा होता उसे गलत समझते
और जो अच्छा नहीं होता उसे अपना मान बैठते
हम इंसान भी कितने नासमझ होते
सही और गलत रास्ते में से
हमेशा गलत रास्ते को चुनते
और हर चीज में फायदे देखते
और हमेशा पछताते
हम इंसान भी कितने नादान होते हैं
— गंगा मांझी