कविता

कैसा मुखिया

उनके पास बड़ा ही अद्भुत ज्ञान है,
दुनिया के सारे समस्याओं का समाधान है,
वो चाहे तो आसमां को
जब चाहे जमीं पर ला सकता हैं,
मगर दिया तले अंधेरा कहावत को
चरितार्थ करते हुए
घर की कलह शांत नहीं करा सकता हैं,
स्थानीय आ जाता है बनकर कोई दुखिया,
पंचायत करने लगता है बन ये तो मुखिया,
मैं बड़ा तो ज्यादा मेरा हक़ है,
दिमाग में है भरा सनक है,
तीन बेटों के मन में
ओछी मानसिकता भरा हुआ है,
चौथे बेटे की कद्र न कोई
दरिद्रता से गड़ा हुआ है,
अक्ल की कोई युक्ति न सूझती
करते रहते हैं शुद्ध नकल,
अत्याचार कर कर के चौथे को
संपत्ति से करना है बेदखल,
खून जलाकर पसीना बहाकर
बेचारा मर मर करता काम,
मुखिया देखो परिवार का
मुंहलगे तीनों बेटों को
प्रगति का देता नाम,
अय्याशी और अय्यारी में
उन तीनों का नहीं कोई सानी,
पर दिखावे के खातिर कहते
हम लोगों की सोच है दूरगामी,
सबको सबका बंटवारा दे दो
हिस्सा देने में क्यों आनाकानी,
कलह न होता कभी भी अच्छा
घर को बचा लो ओ महाज्ञानी।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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