कविता

ये देश जंगल है

ये देश जंगल है
जहाँ शक्तिशाली दूसरे का छीनते मंगल है
कोई शेर बनकर
लघु जीव पर झपटते हैं
कोई लोमड़ी सा छल-कपट करके
दूसरे का हिस्सा दपटते हैं
जहाँ देखते रहता है शाकाहारी जीव
निज साथियों को मरते हुए
मुस्किलाहत में भाग खड़ा होते हैं
समर्थ को डरते हुए।
जहाँ घूमना-फिरना तो क्या
स्वतंत्र पानी पीना भी मुहाल है
जिधर नजर उठा के देखो
केवल और केवल जंजाल है
इस जंगल में मत समझना कोई सुरक्षित है
जिसे शासक बनाओ
वह भी खाते चीथ-चीथ है
कुछ लकड़बग्घा सरि झुण्ड बनाकर रहते हैं
अकेले दुर्बल पाकर समूह में बहरते हैं
इस जंगल में निबल का जीना हराम है
हर कोने में यही दशा अंजाम है।।

— चन्द्रकांत खुंटे ‘क्रांति’

चन्द्रकांत खुंटे 'क्रांति'

जांजगीर-चाम्पा (छत्तीसगढ़)

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