कहूँ या न कहूँ
बड़े असमंजस में हूँ, कहूँ या न कहूँ
डरता हूँ आपके नाराज होने के डर से,
आपसे अपनी नजदीकियों से।
पर करूँ भी तो क्या करूँ?
कहे बिना मुझसे रहा भी तो नहीं जाता,
यह जानते हुए भी कि सच आपको जरूर चुभेगा।
पर इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
क्योंकि आप ही नहीं हर कोई, जो मुझे जानते हैं
मैं साफ सुथरे शब्दों में कहने का रोगी हूँ,
सच के दुष्परिणामों का भुक्तभोगी हूँ।
जाने कितनों से दूर हो चुका हूँ,
नित आलोचनाओं का शिकार होता हूँ,
पर अपनी आदत से बाज नहीं आता हूँ।
आज की तरह असमंजस में भी नहीं रहा कभी
बस! इसीलिए तो आपकी सलाह माँगता हूँ,
आप कुछ भी कहो, पर मैं तोजो सच है, कहे देता हूँ
कहूँ न कहूँ की उहापोह के भंवर से
बाहर निकलकर उन्मुक्त विचरता हूँ।