कविता मौन है
इन दिनों मेरी कविता मौन है,
क्या पता इसके पीछे कौन है।
शब्द, भाव, विचार के बीच
अंतरद्वन्द चल रहा है,
झरने की तरह हर भाव
धीरे -धीरे बह रहा है।
मेरी कविता शायद उदास है,
उसको पढ़ने वाला न आस -पास है।
प्रेम में डूबी कविता लोगों को रास आती है,
मेरी कविता में शायद श्रृंगार की अभिव्यक्ति कम पाई जाती है।
मेरी कविता मुझसे समय मांगती है,
पता नहीं मुझसे क्या -क्या चाहती है।
मैं दिखावे के लिए भाव नहीं जगा पाती,
शायद इसलिए इन दिनों कविता नहीं लिख पाती।
मैंने महसूस किया है कविता मुझे याद कर रही है,
बहुत दिन हुए, कुछ लिखो ये कह रही है।
पर, मैं कैसे कहूँ कि बिना मन के मैं कुछ लिख नहीं पाती हूँ,
जब मन में भाव न हो, मैं कविता रच नहीं पाती हूँ।
थोड़ा विश्राम कर लूँ, फिर कुछ लिखूँगी,
मेरी मौन कविता को, फिर मैं नया रूप दूँगी।
— सपना परिहार