द्विगुणित सुन्दर छंद
झूले ऊँचा-नीचा, कर्मों का ये खेला।
हिय हो शुभ भावों का, निर्मल मंगल मेला।।
जीवन पावन धारा, धर्म-कर्म भंडारा।
मानवता का डंका, चहुँ दिशि हो झंकारा।।
झूले ऊँचा-नीचा, कर्मों का ये खेला।
हिय हो शुभ भावों का, निर्मल मंगल मेला।।
जीवन पावन धारा, धर्म-कर्म भंडारा।
मानवता का डंका, चहुँ दिशि हो झंकारा।।