कुण्डली/छंद

द्विगुणित सुन्दर छंद 

झूले ऊँचा-नीचा, कर्मों का ये खेला।

हिय हो शुभ भावों का, निर्मल मंगल मेला।।

जीवन पावन धारा, धर्म-कर्म भंडारा।

मानवता का डंका, चहुँ दिशि हो झंकारा।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८

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