कर्तव्य बोध
जिसने कभी किया ही नहीं
जीवन की तमाम परिस्थितियों पर शोध,
उनसे कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि
उनके अंदर होगा कर्तव्य बोध,
इसके लिए दिमाग के साथ दिल भी चाहिए,
सुस्पष्ट सोच और लक्षित मंजिल भी चाहिए,
हमारे देश के कर्णधारों में,
कुंठित सिपहलसारों में,
यदि कर्तव्य बोध होता,
तो देश की उन्नति की राह में
कोई भी लोकसेवक कांटें क्यों बोता,
इस देश में हुए हैं ऐसे भी लोग महान,
जिनका दर्जा होना था भगवान,
उन सबके योगदान और स्मृतियों को
बहुतों ने मिटाना चाहा,
कुढ़ता में आ उन सबको भुलाना चाहा,
होता कर्म के प्रति लगाव तो
भ्रष्टाचार मुंह बांये न खड़ा होता,
धन कुबेर और अपराधी
नेताओं के दांये बांये न खड़ा होता,
कुछ लोगों के खून में बस चुका है
देश के साथ भयंकर गद्दारी,
प्रगति की राह में जो पड़ रहा भारी,
पता नहीं कब जल पायेगा
कर्तव्यनिष्ठता का जोत,
और कब ला पाएंगे सब
अपने अंदर कर्तव्य बोध।
— राजेन्द्र लाहिरी