ग़ज़ल
ये हुस्न तेरा बना ही क़ातिल, मरें मराना लगा रहेगा।
खुली ही खिड़की सदा रहेगी, अभी तो आना लगा रहेगा।
बढ़ा सको तो बढ़ा भी देना, ज़रा क़दम दो सुनो तो आगे।
करो इशारा कभी भी तुम जो, क़दम बढ़ाना लगा रहेगा।।
हमीं ये जाने लिखी ग़ज़ल जो, भरा हुआ है प्यार उसी में।
सजा दो महफ़िल तुम्हीं हमारी, तराना गाना लगा रहेगा।
घने जो गेसू बिखर रहे हैं, ख़ुशबू उनकी इधर भी आती।
उलझ सकेंगे उन्हीं में हम ही, उनमें समाना लगा रहेगा।।
जभी से देखा हमीं ने तुमको, बहुत ही हलचल मची हुई है।
ये इश्क़ देखो करे है घायल, दिल में समाना लगा रहेगा।।
वफ़ा की बातें सदा ही करना, कभी न करना अब दूर हमको।
जो रूठ जाओ कभी भी देखो, सुनो मनाना लगा रहेगा।।
मिलन हुआ जो मिले रहेंगे, बिछोह होगा ख़ुदा की क़ुदरत।
फ़ना हुये जो कभी भी देखो, जहां का भाना लगा रहेगा।।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’