कविता

खोलना तुझको पड़ेगा द्वार अपना

द्वार पर तेरे सुबह आई हुई है
भास्कर की यह छटा / सबसे निराली
मुक्त मन से सप्तरंगी फैलती
किरणें रिझाएं ।

खोलना तुझको पड़ेगा द्वार अपना
बाहर आने पर दिखेगा
इन्द्रधनुषी रश्मियों का बालपन
कितना मधुर है
द्वार मन का थपथपाएं ।

ज्ञान पाना ह गुरु को खोजना तुझको पड़ेगा
पुस्तको में
सारगर्भित है बहुत कम
कौनसा है अंश
जो थोथा भरा है
तत्वदर्शी ज्ञानियों के
पास जाकर के समझना
हृदय में किसको समाये ।

प्रकृति की हर एक वस्तु बोलती है
कोई न कोई संदेश देकर
तोलती है
खिड़कियां तो
खोलनी तुझको पड़ेगी
मौन वाणी है हवा में
कान से सुनना तुझे है
चक्षु अपने खोल करके
सत्य को चुनना तुझे है
ज्ञान को हृदयगम
करना तुझे है
स्व – विवेक मिल जाएंगा
गुरु की गहराइयों में
डूब जाएं ।

— रामस्वरूप मूंदड़ा

रामस्वरूप मूँदड़ा

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