कविता

गुस्सा

बेटा इस गुस्से को बचा कर रखिये,
अपने अंदर अभी छुपा कर रखिये,
ये होती तो नाचीज है,
पर बड़े काम की चीज है,
जब फूटता है इसका लावा,
कर सकता सब कुछ स्वाहा,
क्योंकि इसके अंदर क्षोभ और पीड़ा है,
इस गुबार को निकालना उसी पर है
जिसके लिए व्यवस्था से
खेलना मात्र एक क्रीड़ा है,
इस बह रहे लावा को यूं न बहाओ,
वक्त पर बड़े काम का है इसे बचाओ,
अपनों पर इसे उड़ाना
आपके लिए शायद ठीक है,
पर इसे ऐसे उड़ाना
औरों के नजरिये से यह
कमजोरी का प्रतीक है,
इसे बचा अपने हक़ हुक़ूक़ से लड़ने के लिए,
अपना हक हासिल कर आगे बढ़ने के लिए,
जब जिम्मेदार लगे बहकाने,
बनाने लगे नए नए बहाने,
जब आ जाए देश पर मुसीबत,
चुकानी पड़े अपने फर्ज़ की कीमत,
तब इस गुस्से को सैकड़ों गुना उड़ेल,
मिट जाए या सही राह पर आ जाए बिगड़ैल,
यह भी मानवीय गुणों का सार है,
इसके बिना अधूरा सा संसार है।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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