गीतिका/ग़ज़ल

मेरे जानिब जरा मुस्कुराया करो

आईनों की नियत बदल जायेगी!
इतना- संवर के ना जाया करो
याद में जितना तुम आ जाते हो
कूंचे में भी कभी आ जाया करो

बस इक गली शहर की मुझे जानती
बाकी अंजान सारा शहर लग रहा
अमीनाबाद सी कशमकश दिल में बसी
मेरे जानिब जरा मुस्कुराया करो

बाग की सारी कलियां फीकी पड़ीं
ऐसी फैली फिजा में है खुशबू तेरी
सुर सारे यहां बेसुरे हो रहे
पायल ना अपनी बजाया करो

मोरनी चाल में यूं इतराना तेरा
हिबडे़ में आने का क्या (राज) है
नौव्हाख्वानी मची हर गली में यहां
धार कजरे की ना ऐसी बनाया करो

घटाओं को अब तक बहुत नाज था
देख गेशू तेरे वो सिमट सी गयी
जिगर चाक दंपा न कर पायी है
पलक यूं उठाकर ना गिराया करो

राज कुमार तिवारी (राज)
बाराबंकी उ0प्र0

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782

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