मेरे जानिब जरा मुस्कुराया करो
आईनों की नियत बदल जायेगी!
इतना- संवर के ना जाया करो
याद में जितना तुम आ जाते हो
कूंचे में भी कभी आ जाया करो
बस इक गली शहर की मुझे जानती
बाकी अंजान सारा शहर लग रहा
अमीनाबाद सी कशमकश दिल में बसी
मेरे जानिब जरा मुस्कुराया करो
बाग की सारी कलियां फीकी पड़ीं
ऐसी फैली फिजा में है खुशबू तेरी
सुर सारे यहां बेसुरे हो रहे
पायल ना अपनी बजाया करो
मोरनी चाल में यूं इतराना तेरा
हिबडे़ में आने का क्या (राज) है
नौव्हाख्वानी मची हर गली में यहां
धार कजरे की ना ऐसी बनाया करो
घटाओं को अब तक बहुत नाज था
देख गेशू तेरे वो सिमट सी गयी
जिगर चाक दंपा न कर पायी है
पलक यूं उठाकर ना गिराया करो
राज कुमार तिवारी (राज)
बाराबंकी उ0प्र0