गीतिका/ग़ज़ल

सब्र करते करते

सब्र करते करते कितने ही बरस बीत गए।
आज़ाद हैं हम ! गाए कितने ही गीत गए।

लहू देख अपनों का… संग गैर भी सहम गए;
हुआ कितनों के साथ यही हम फिर भी सह गए।

मानवता धर्म हमने सीखा संग सीखा प्रतिशोध है;
खुलकर कोई कुछ कहता न पर आंखों में रोष है।

ढेर लाशों का ढोती धरा अब तक क्यों ख़ामोश है;
नभ भी नीर न बहाए देख दृश्य किसका दोष है।

ईंट से ईंट बजानी है, संग बेकुसूर की जान बचानी है;
इंसान हैं विधर्मी नहीं, ये बात भी हमें समझानी है।

वतन से प्रेम …हमने बासुदेव कुटुंबकम् सीखा है;
धर्म, संस्कार के बल पर दुश्मन को भी जीता है।

घर आए दुश्मन को भी पानी पिलाना हम जानते हैं;
ज़ुल्म करना सहना दोनों पाप हैं ये भी हम मानते हैं।

जाओ मना लो जश्न आज तुम कायरता का खुलकर;
मिलेगा जवाब जल्दी ही रखना दिमाग में लिखकर।

— कामनी गुप्ता

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |

Leave a Reply