इतिहास का तराजू
कब तक ढोएँगे बोझ पुराने,
मुग़ल सल्तनत के वीर सुबाने?
क्यों ना पढ़ें वो ज्ञान-विचार,
जो चाणक्य ने दिए अपार?
चित्रगुप्त की लेखनी भारी,
धर्म-कर्म की वो जिम्मेदारी।
शिवाजी का साहस कहता है,
राष्ट्रधर्म से बढ़कर क्या है?
गौरव गाथा छुपी पन्नों में,
नायक खो गए अंधे खंडों में।
अब समय है फिर से जागें,
अपने पुरखों के दीप जलाएँ।
हर पीढ़ी को समझाएँ यह,
हम थे, हैं और रहेंगे श्रेष्ठ।
इतिहास नहीं बस हार-जीत,
ये तो आत्मा की होती रीत।
जय सनातन, जय संस्कार,
ज्ञान-विज्ञान हमारा आधार।
नई किताबों में हो वो बात,
जो दे बच्चों को अपनी जात।
— प्रियंका सौरभ