गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

खुद को खुद में रहने दो,
थोड़ा- बहुत विचरने दो।
लोग कहां पहचानेंगे,
चेहरा उसको रंगने दो।
खुशबू जिसमें बसती है,
उसको जरा महकने दो।
सूरज चांद सितारों से
दुनिया को कुछ कहने दो।
सच ही मारा जायेगा,
झूठों को तुम लड़ने दो।
जाना बहुत जरूरी क्या,
मुमकिन हो तो रहने दो।
पूरी एक नदी मुझमें,
बहती है तो बहने दो।
जीवन की गतियां न्यारी,
मुझको पार उतरने दो।

— वाई. वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

द्वारा विद्या रमण फाउण्डेशन 121, शंकर नगर,मुराई बाग,डलमऊ, रायबरेली उत्तर प्रदेश 229207 M-9670040890

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