ग़ज़ल
जो यक़ी उसका खोता नहीं है।
नाव रब फिर डुबोता नहीं है।
रौशनी दो मुझे या मुहम्मद,
तीरगी दिल ये ढोता नहीं है।
जिसकीनीयत भली हो हमेशा,
फिर बुरा उसका होता नहीं है।
फूल मिलते उसे फिर नहीं ही,
बीज यदि गुल के बोता नहीं है।
सोचकर जो कदम है उठाता,
बाद में फिर वो रोता नहीं है।
— हमीद कानपुरी