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शब्दों की गुल्कालक : भावों का प्रवाह

 युवा कवियित्री एकता गुप्ता 'काव्या' का एकल काव्य संग्रह 'शब्दों की  गुल्लक' एक अनुभूति है। जिसे कोरोना काल में लेखन से पहचान बनाने वाली एक युवा कवयित्री के चिंतन और अनुभूतियों का काव्य संग्रह कहना ठीक समझता हूँ।
 काव्य संग्रह का मुख्यपृष्ठ  मोहक होने के साथ संग्रह के नाम को सार्थक करता है।
 काव्या ने अपने प्रस्तुत संग्रह में हाइकु, सायली, दोहे, छंदबद्ध रचनाओं और गीतों को सहेजकर इस गुल्लक में सहेजने का सुंदर प्रयास किया है।
  संग्रह में जीवन की विविधताओं यथा प्रेम, विरह, आत्ममंथन, नारी चेतना, प्रकृति, देशप्रेम और सामाजिकता सहित संवेदनाओंओं का समावेश देखने को मिलता है।
  भूमिका में लेखिका की आत्मीयता का संवेग प्रवाह शीतलता प्रदान करता है। संग्रह को बाबा जी स्व. भगौती प्रसाद गुप्ता को समर्पित कर उनकी स्मृतियों को सहेजने की कोशिश भावुक करती प्रतीत होती है।

नमन/ वंदन में माता-पिता के प्रति आत्मस्वीकृति – मैं आप दोनों की लिखावट हूँ, आप दोनों पर कुछ भी लिख पाऊँ मैं न- एक बेटी का माता पिता प्रति हृदयस्पर्शी आत्म अभिव्यक्ति है। शुभकामना संदेशों की श्रृंखला के बाद लेखिका का परिचय मन मोहने वाला है।
71 कविताओं के प्रस्तुत काव्य संग्रह की शुरुआत विनती मां शारदे से होकर शब्दों की गुल्लक पर जाकर समाप्त हुई है।

 मेरी विनती माँ शारदे में लेखिका ने अपने अंतर्मन के भाव उड़ेल दिए हैं - 

कर्तव्य और कर्म हो सर्वोपरि मेरे
करूं सभी का सदा सेवा सत्कार।

 बुजुर्गो की अहमियत में लेखिका का प्रश्न एक झोरता  प्रतीत होता है - 

क्यों बढ़ा रहे हम अपने बुजुर्गों से दूरियां।

  चाय की चुस्कियां में अनुभवों से जोड़ने का प्रयास किया गया है -

थकान हमारी दूर करती, ये मसालेदार चाय।

  सपनों की दुनिया में गुदगुदाने का सुंदर प्रयास है-

यमराज काका के साथ, बिताया सुंदर साथ,
मस्ती भी खूब करी और करी ढेरों बात।।

जिंदगी हैरान करती है, बुद्ध हो जाने का अर्थ, अनुभव,मां के भाल की बिंदी, विजयदशमी, कैसे उन्नत हो हिंदी भाषा, तू ही पालनहार, निषेध करो बालश्रम, जीवन सार, दिमाग मत खाओ,यमराज से मुलाकात, अनकहे स्वप्न सहित अन्य रचनाएं पाठकों को विविधताओं के रंग में रंगने की कोशिश करती हैं।
   संग्रह में 21 पृष्ठ में कविताएं, 12 पृष्ठ में हाइकु और 38 पृष्ठों में सायली छंद है। इसलिए इसे सायरी संग्रह कहना ज्यादा अच्छा होगा। 
 अंत में सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि बतौर युवा लेखिका के संग्रह के तौर पर प्रस्तुत संग्रह को भविष्य का सुखद संकेत माना जा सकता है, जो समय/अनुभव के साथ ही बेहतर होते जाने की उम्मीद जगाता है।
  प्रस्तुत संग्रह की स्वीकार्यता के साथ काव्या के सुखद उज्जवल भविष्य की कामना, प्रार्थना, स्नेहिल आशीष के

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

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