कविता

अनकही तकलीफें

तकलीफें, जो दिखती नहीं,
मगर भीतर चुभती रहती हैं।
कह न सके जो दिल की भाषा,
वो लहरें मद्धम-सी बहती हैं।

आँखों में छुपा हुआ समंदर,
जो कभी बह निकले न सके।
मौन से बुनी हुई एक कथा,
कोई सुन सके, कोई न सके।

मुस्कान के पर्दे के पीछे,
छुपा एक अकेला साया है।
जिसके दर्द को समझ न सका,
वो दिल का कोई माया है।

धूप में भी ठंडी छाँव सी,
कहीं ये पीड़ा छुपी रहती है।
अधरों पर अनकहे गीत,
मन की कोई पुकार सुनती है।

— प्रियंका सौरभ

*प्रियंका सौरभ

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, (मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप) facebook - https://www.facebook.com/PriyankaSaurabh20/ twitter- https://twitter.com/pari_saurabh

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