अनकही तकलीफें
तकलीफें, जो दिखती नहीं,
मगर भीतर चुभती रहती हैं।
कह न सके जो दिल की भाषा,
वो लहरें मद्धम-सी बहती हैं।
आँखों में छुपा हुआ समंदर,
जो कभी बह निकले न सके।
मौन से बुनी हुई एक कथा,
कोई सुन सके, कोई न सके।
मुस्कान के पर्दे के पीछे,
छुपा एक अकेला साया है।
जिसके दर्द को समझ न सका,
वो दिल का कोई माया है।
धूप में भी ठंडी छाँव सी,
कहीं ये पीड़ा छुपी रहती है।
अधरों पर अनकहे गीत,
मन की कोई पुकार सुनती है।
— प्रियंका सौरभ