डिफॉल्ट

कौन तुझसे डर रहा है?

वाह रे! कलयुग तेरी माया भी कितनी अजीब है,बड़े-बड़े ज्ञानी, संत, महात्मा, विद्वान या फिर हो आज का विज्ञानकिसे समझ आता है, जो दे रहा तू ज्ञान।सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो रहा है सबका ही भाव गुलाटी मार रहा है,रिश्ते, संवेदना, मर्यादा हो या मान-सम्मान सब समय के दलदल में धँसता जा रहा है।तेरा अट्टहास बता रहा है कि तू अपने मकसद में सफल हो रहा है,अपवादों, विडंबनाओं की बात ही हम क्यों करें?अंगूर खट्टे हैं, सब तो यही संवाद करें।भगवान भला करें तेरा, जो बड़ा फल-फूल रहा है,अपने विकास की नित नई गाथा लिख रहा हैऔर आज हमें ही आइना दिखाकर चिढ़ा रहा है।पर हम ठहरे नादान, नासमझ, पढ़ें लिखे बेवकूफ बस! इसी बात का तू फायदा उठा रहा है,अपनी सफलता पर खूब इतरा रहा हैविनाश का संकेत देकर हमें भरमा रहा हैईमानदारी से कहूँ तो तू सब पर भारी पड़ रहा है।कलयुगी इतिहास रचता जा रहा हैशर्मोहया को छोड़ भाँगड़ा नृत्य कर रहा है और हम-सबको डराने की कोशिश कर रहा है।पर ऐसा लगता है, कि तू मुगालते में जी रहा है,जरा हमको भी तो बता! आज के समय में कौन तुझसे डर रहा है?

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

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