अनकही
किस पथ पर सखे ऐसे मिले
शुरू कैसे हो वह सिलसिले।
भरे पूरे चमन तुम्हारे
क्यों ना उन यादों को पी ले?
खाद मिट्टी जो तूने मिलाई
वृक्ष ने भी जड़े फैलाई।
वृहत आकार वो ले चुके
नहीं जा सकती अब हिलाई।
अब दूजा सुमन कैसे खिले,
अब क्या करें हम शिकवे गिले।
सभी पुरानी यादों को तज,
मिलें यूँ!ज्यों पहली दफा मिले।
शायद फिर कभी हम मिलेंगे
क्षितिज को जब अंबर चुमेंगे,
क्यों खोले अतीत के पन्ने
शायद ही वह गिरह खुलेंगे।
याद अंकुरित होती रहेंगी
बारिश जब झर झर बरसेंगी,
दफन करें वो सारी बातें
वरना सदा रिसते रहेंगी।
— सविता सिंह मीरा