ग़ज़ल
दूर होगा यह अंधेरा आइए।
दीप रोशन ही रहेगा आइए।
मंदिरों से मस्जिदों तक का सफर
कारवां बढ़ता रहेगा आइए।
भीड़ के हैं ज़लज़ले सारे नगर
यह सफर तन्हा रहेगा आइए।
जागरण के गीत गाते जो थके
आसरा उनको रहेगा आइए।
सुख कहां पर है बचा सारी धरा पर
दुःख तो सागर रहेगा आइए।
झूठ व पाखण्ड के सारे महल ढह जायेंगे
सच का घर जिन्दा रहेगा आइए।
ढ़ह गये हैं मंच सब प्रेम व सद्भावना के
द्वन्द्व का वह दर्प तो तारी रहेगा आइए।
— वाई. वेद प्रकाश