हास्य व्यंग्य

ज्ञापन बाज

किसी भी शहर में कोई  छोटी मोटी घटना भी घट जाये तो  कुछ ज्ञापन और  विज्ञापन बाज तुरंत ज्ञापन देने निकल  पड़ते हैं। हमारे शहर में भी मेरे मित्र भाई भरोसे लाल का नाम इन ज्ञापन बाजों वाली लिस्ट में काफी ऊपर शामिल है। वे  भी  अक्सर दूसरे चौथे दिन किसी न किसी बात पर ज्ञापन   देते ही  रहते हैं। कभी  कुत्ते द्वारा दिवार पर  मूतने को  ले क र कभी किसी कुतियाके सड़क पर बया (बच्चे देने ) जाने को ले कर। कभी  शहर में धूल  उड़ने को ले कर तो कभी सरकारी नल लगवाने को ले कर, कभी किसी बात पर तो कभी किसी बात पर। वे समय २ पर कोई  न कोई  ज्ञापन  देते ही रहते हैं। और जब कुछ भी  बात न हो तो वे  कोई  मुद्दा खुद भी बना लेते हैं जिस से ज्ञापन दिया  जा सके क्योंकि उन्हे किसी  न किसी तरह अख़बारों में अपना नाम या फोटो छपवाने की बहुत भयंकर बीमारी है। 

मैंने एक  दिन उन से बड़े आराम से पूछा कि भाई आप इतने  दिन से यह ज्ञापन ज्ञापन  खेलते आ रहे हो  तो क्या अभी तक  इस का कुछ परिणाम भी निकला है। तो वे बोले कि यार तुम  तो रहे वही हिंदी   के लेखक ही तुम्हे इतना भी  नहीं पता  कि इन ज्ञापनों से भला कुछ हो भी  सकता।  कुछ होता तो  शहर ही  नहीं पूरा देश ही सुधर जाता  और दूसरी बात  यह कि यदि इस से कुछ होता ही  तो हमे ज्ञापन ही  कौन देने देता। यदि किसी पर इन से कुछ एक्शन होता तो वे रास्ते में ही हमें  रोक कर हमारे हाथ से यह ज्ञापन देने से पहले ही  छीन लेते।  और हो सकता  है हमारी कुटाई  भी हो सकती  थी। अब जिन लोगों के खिलाफ ज्ञापन दिया जा रहा है  उन्हें भी पता है कि इन कागजों से भला  क्या हो सकता है   जब कि उन के खिलाफ तो  रिपोर्ट लिखवाने पर भी कुछ नहीं होता है। फिर   ऐसे ज्ञापन भला क्या मायने रखते हैं। इस लिए  ही वे हमे ज्ञापन आराम से देने  देते हैं ताकि उन  केउल्टे सीधे कामों पर सही से मोहर भी लग जाये।    

असल में  तो हमें  भी पता है कि हमारे ज्ञापन  से होना जाना तो कुछ नहीं है और उन्हें भी खूब पता है  कि  ये सब तो रद्दी की टोकरी में फेंके ही  जाते हैं। परन्तु हमारा फोटो खिंच जाता है और अखबरपन में छप जाता है तथा नाम भी जनता तक पहुँच जाता है जिस से कभी कोई  मोटी   पार्टी  भी  फंस सकती है जिस की सेवा से कुछ मेवा भी  मिल सकता है। इस के साथ ही राजनीतिक पार्टियों को भी पता चल जाता है कि मेरे साथ भी कितने लोग हैं उन्हें तो  बस भीड़ चाहिए और उन के  लिए  भीड़ जुटाने के काम  ये ज्ञापन बाज ही आ सकते हैं साथ ही यदि दाव लग जाये  तो पार्टी में भी कोई पद मिलने की संभावना भी  बन जाती है। और ज्ञापन देने के बाद किसी की  जिम्मेदारी भी नहीं रह जाती है  क्योंकि  ज्ञापन में किसी  की जिम्मेदारी  ही नहीं होती है। इसी लिए जो जिम्मेदार भी हैं वे  भी ज्ञापन के बाद आराम करते हैं बेशक उन्हें कितने भी ज्ञापन दे लो।  

  भरोसे लाल   ज्ञापन पर जब पूरा निबंध सुनने लगे  तो  उन्हें बीच में ही निबंध समाप्त कराते  हुए   कहा कि आप यह  ज्ञापन ज्ञापन २ खेलने  के बजाय  कुछ  और क्यों नहीं करते हैं क्योंकि कुछ लोग इन ज्ञापनों के चक्कर   में बिलकुल नहीं पड़ते हैं अपितु वे सीधा एक्शन करते हैं। उन्होंने कार्टून बनने पर ज्ञापन  नहीं दिया अपितु सीधा एक्शन कर दिया।  ऐसे ही भारत में भी  उन्हें जिन जिन भारतीय चीजों से खुंदक होती है वे सीधे एक्शन कर   देते हैं या जब एक्शन का  बस नहीं चलता है   तो ज्ञापन देने के बजाय  कोर्ट चले जाते हैं कि देखो होली पर पानी  बर्बाद हो  रहा है या त्यौहारों पर इतना पैसा क्यों बर्बाद किया जा रहा है और इतनी धूमधाम  से त्यौहार क्यों मनाये  जा रहे हैं इसी प्रकार वे कभी ध्वनि प्रदूषण  के या कभी किसी  और नाम पर सीधे कोर्ट जा कर भी एक्शन करवा देते हैं। और वहां पर  वे भी इन के लिए तैयार ही बैठे रहते हैं कि जल्दी आओ हम ने तो तुम्हारे एक्शन के हिसाब से पहले ही आदेश टाइप करवा कर रखे हए हैं और बस आप के आने  की  देर है आदेश तो  तैयार हैं ही बस  आप को लेने  आना है। 

इस लिए भाई आप भी  ज्ञापन बाजी के बजाय कोर्ट बाजी शुरू  कर दें ,जिस से कुछ ठोस काम हो सके। तो भाई भरोसे लाल बोले कि आप जो सोच रहें हैं वह ऐसा नहीं  हैअपितु वहां कुछ और ही होता है। वे कुछ ही त्यौहारों पर या परम्पराओं  पर कोर्ट जाते हैं सब पर नहीं  और यदि कोई गलत और नुकसानदायी परम्पराओं पर कोर्ट चला भी जाये  तो वे उस  की सुनते ही  नहीं  है  अपितु सुनने की बात  तो दूर वे तो उन पर जुर्माना  भी लगा देते हैं। पर कुछ लोगों केलिए  वे आधी  रात  को  भी जाग कर  कार्यवाही  शुरू  कर  देते हैं। और वे कई  बार तो यह  भी  कह  देते  हैं कि बकरे कौन सा हमारे पास न्याय मांगने आएं हैं जो  हम उन्हें कटने  से बचाएं परन्तु वैसे गाँधी जी की तथाकथित  हिंसा अहिंसा पूरे दिन देश चिल्लाता रहता है  पर बेजुबानों को निर्दयता से काटने पर अपने मुंह नहीं खोल पाता  हैं। 

मैंने  कहा भाई आप यह सब ठीक कह रहे हो और आप को सब बातें पता भी  है ,फिर  सही जगह पर न्याय दिलाने क्यों नहीं जाते , बेकार में ज्ञापनबाजी खेलते रहते हो। जिस से आप का जनता का ,अख़बारों के कागज का इलेक्ट्रॉनिक मिडिया का आदि सब का  टाइम खराब न हो। तो उन्होंने मेरी तरफ आश्चर्य और प्रश्नवाचक दृष्टि से एक  साथ देखा कि जैसे मैं एकदम मूर्ख हूँ। और मुझे   यह भी  पता नहीं कि ज्ञापन कहाँ पर दिया जाता है तो उन्होंने बताया कि भाई ज्ञापन महामहिम राष्ट्रपति या राजपाल महोदय के नाम  न दें तो किस के नाम दें और क्या आप के नाम पर दें कि  हे !लेखक महोदय हमे न्याय दिलवाइये। पर मुझे  तो लगता है कि एक ज्ञापन मुझे लेखक महोदय आप के लिए भी देना पड़ेगा क्योंकि आजकल लेखक पहले तो लिखने में अपनी एनर्जी लगता है फिर उसे फेयर करता है फिर वैसे खर्च कर के  टाइप करवाता  है फिर छपवाने में प्रकाशक को पैसे देता  है  फिर उस के लोकार्पण पर पैसा खर्च करता है उस के बाद  उस पुस्तक को मुफ्त में बांटता है पर लिखता शोषण के विरुद्ध है और खुद शोषित होता रहता है। इस लिए मुझे लगता है एक  ज्ञापन मुझे आप के लिए भी देना पड़ेगा। उन की बातों से मेरी बोलती  बंद हो गई  क्योंकि उन की बातो के तीर एकदम सही निशाने पर छूटे थे और लगे भी सही निशाने पर ही थे।  

  परन्तु मैं  उन्हें एकदम निराश भी  नहीं करना चाहता था। इसलिए पूछा कि भाई आप ज्ञापनदेकर उन्हें न्याय कैसे  दिला सकते हैं क्या आप के  पास कोई ऐसा डंडा  है  जिस से प्रकाशक  से मुझे रॉयल्टी दिलवा सकते हैं। तो  वे बोले की  सारी  रात रामायण पढ़ी और फिर पूछ रहे हो कि सूपनखा की शादी  किस के साथ हुई राम जी के या लक्ष्मण जी के। भाई जब आप को  सब पता है कि ज्ञापन देने पर  कुछ होता जाता नहीं है  पर फिर से आप वही  बात पूछ रहे हैं। पर हाँ ऐसा ज्ञापन देने पर मुझे कुछ नए २ लेखक जरूर अपनी पुस्तक के लोकार्पण में अतिथि की तरह अवश्य बुला लिया करेंगे क्योंकि मैं उन्हें आश्वासन दूंगा कि मैं उन को रॉयल्टी दिलवाने के लिए ज्ञापन दूँगा।  

 पर मैंने उन्हें कहा  कि भाई आप  यह धंधा बंद क्यों नहीं करते क्योंकि मुकददमा  दर्ज करना यानि एफ आई आर लिखना पुलिस का काम है और यदि यदि  पुलिस ठीक से रिपोर्ट लिख कर सही से जांच कर ले तो फिर आप को ज्ञापन देने की  जरूरत ही क्यों पड़े।  परन्तु अन्याय  भी  तो यहीं से शुरू होता है। पर आप पुलिस को तो कुछ कह  नहीं सकते हैं।  इस लिए राजपाल  महोदय के नाम ज्ञापन दे कर खुश हो जाते हैं कि लो बस अब न्याय हो  गया परन्तु आप को  यह भी अच्छी तरह पता है कि पुलिस बस  अपने मंत्री  की सुनती है बाकि कोई कुछ भी कहता रहे उसे कोई फर्क नहीं  पड़ता है  और उस के जो  मन में आता है या जहां उस की सेवा पानी हो जातीहै  उस की ही  सुनती है। यह आप को  भी  अच्छी तरह  पता है पर कई  बार  तो वह  मंत्री की भी नहीं  सुनती है बेशक  सस्पेंड हो जाये क्योंकि कुछ दिन में वह फिर से बहाल हो जाता है। पर सच  का नुकसान  तो कर ही जाता है। 

इसी तरह  जब मुक्क्दमा  दर्ज हो जाता है तो फिर कोर्ट में कौन सा आसानी से न्याय मिल जाता है। वहां दादा का मुकददमा पोता तक लड़ता २ बूढ़ा  हो  जाता है पर  आप फिर भी वहां ज्ञापन देने नहीं जाते हैं या जा नहीं सकते हैं और आप जिन्हे ज्ञापन देने  जाते हैं वे भी कोर्ट को कुछ नहीं कह सकते है पर भाई कभी  आप ऐसी जगह भी  ज्ञापन देने की कोशिश  किया करें  जिस से कुछ भला हो  सके। तब वे  बोले भाई मुझे कोई  पागल  कुत्ते ने थोड़ी   कटा है जो बैल  को अपने आप को मारने खुद ही  बुलाऊँ। आपको  पता  है  कि पुलिस  वाले किसी की सुनते नहीं है और कोर्ट को कोई कुछ कह नहीं  सकता है । इस लिए हम जहां ज्ञापन दे रहे हैं वहीं  देने दो वही  ठीक  है। इस से हम भी  खुशऔर बाकि भी खुश हैं। हम तो  सब का भला  चाहते हैं। इस लिए ज्ञापनबाजी करने में लगे रहते हैं।

— डॉ वेद व्यथित   

डॉ. वेद व्यथित

ख्यात नाम : डॉ. वेद व्यथित नाम : वेद प्रकाश शर्मा जन्म तिथि : अप्रैल 9,1956 शिक्षा : एम्० ए० (हिंदी ),पी एच ० डी० शोध का विषय "नागार्जुन के साहित्य में राजनीतिक चेतना मेरठ विश्व विद्यालय मेरठ वर्तमान पता : अनुकम्पा -1577 सेक्टर -3 ,फरीदाबाद -121004 फोन नम्बर : 0129-2302834 , 09868842688 ईमेल : dr.vedvyathit@gmail.com Blog : http://sahiytasrajakved.blogspot.com सम्प्रति : अध्यक्ष - भारतीय साहित्यकार संघ (पंजी ) संयोजक - सामाजिक न्याय मंच (पंजी) उपाध्यक्ष - हम कलम साहित्यिक संस्था (पंजी ) शोध सहायक - अंतर्राष्ट्रीय पुनर्जन्म एवं मृत्योपरांत जीवन शोध केंद्र इंदौर ,भारत परामर्श दाता - समवेत सुमन ग्रन्थ माला सलाहकार - हिमालय और हिंदुस्तान विशेष प्रतिनिधि - कल्पान्त सम्पादकीय परामर्श - ब्रह्म चेतना सम्पादकीय सलाहकार - लोक पुकार साप्ताहिक पत्र संस्थापक सदस्य - अखिल भारतीय साहित्य परिषद ,हरियाणा प्रान्त पूर्व सम्पादक - चरू (साहित्यिक पत्र ) पूर्व प्रांतीय सन्गठन मंत्री - अखिल भारतीय साहित्य परिषद परामर्श दाता : www.mohantimes .com (इ पत्रिका ) जापानी हिंदी कवि सम्मेलनों में सहभागिता अनुवाद : जापानी,रुसी ,फ्रेंच , नेपाली तथा पंजाबी भाषा में रचनाओं का अनुवाद हो चुका है प्रकाशन : मधुरिमा (काव्य नाटक ) १९८४ आखिर वह क्या करे (उपन्यास )१९९६ बीत गये वे पल (संस्मरण )२००२ आधुनिक हिंदी साहित्य में नागार्जुन (आलोचना )२००७ भारत में जातीय साम्प्रदायिकता (उपन्यास )२००८ अंतर्मन (काव्य संकलन )२००९ न्याय याचना (खंड काव्य ) 2011 साहित्य पर शोध : 'बीत गए वो पल' संस्मरण में सामाजिक चेतना कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय कुरुक्षेत्र 'आखिर वह क्या करे ' उपन्यास में अन्तर्द्वन्द की अवधारणा विनायक मिशन्स विश्व विद्यालय तमिल नाडू 'भारत में जातीय साम्प्रदायिकता ' उपन्यास में सामाजिक बोध krukshetr विश्व विद्यालय 'मधुरिमा' काव्य नाटक पर शोध कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय नवीन सर्जन : * "व्यक्ति चित्र " नामक नवीं विधा का सर्जन किया है * "त्रि पदी" काव्य की नई विधा का सर्जन किया है अन्य *कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय में आयोजित एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में अंतिम सत्र की अध्यक्षता * शताधिक साहित्यिक समारोह व गोष्ठियों की अध्यक्षता की है अंर्तजाल (Internet) पर प्रकाशित विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशन : www.pravasiduniya.com www.sahityashilpi.com www.p4poetry.com http://sakhikabira.blogspot.com http://aakhrkalsh.blogspot.com http://blog4varta.blogspot.com http://utsahi.blogspot.com www.chrchamnch.com www.janokti.com www.srijangatha.com www.khabarindya.com etc. सम्मान : साहित्य सर्जन के लिए "समाज गौरव "सम्मान भारतीय साहित्यकार संसद द्वारा "मोहन राकेश शिखिर सम्मान पत्रकार विश्व बन्धु सम्मान युवा कार्यक्रम एनम खेल मंत्रालय भारत सरकार द्वारा सम्मान हिमालय और हिंदुस्तान एवार्ड हरियाणा सरकार द्वारा आपात काल के विरुद्ध किये संघर्ष के लिए ताम्र पत्र से सम्मानित विभिन्न विधाओं में निरंतर लेखन....

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