बाल कथा – दादी माँ का पोटली-पुराण!
“दादी भूख लगी है.” पिकनिक के लिए अभी कार थोड़ा आगे चली ही थी कि छोटा पोता बोला.
“क्या चाहिए बेटा?” दादी माँ ने प्यार से पूछा.
“दादी माँ, आपकी पोटली में इसकी पसंद की चॉकलेट तो होगी ही!” बड़े पोते ने मजे लिए.
“हाँ बेटा, पहले आप लो, अपनी पसंद के बिस्कुट!” दादी माँ ने उसको देते हुए कहा और छोटे को दी चॉकलेट!
“दादी माँ आपकी जादुई पोटली-पुराण में और क्या-क्या है? एक बार मैं देख लूं?” बड़े की जिज्ञासा थी.
“पोटली को जादुई भी कह रहे हो और देखना भी चाहते हो, फिर जादू तो खत्म हो जाएगा!”
“अच्छा बताइए कि आपके पोटली में और क्या-क्या है?” छोटे ने पूछा.
“मेरी पोटली में कहानी है.”
“हाँ-हाँ वही, एक था राजा, एक थी रानी,
दोनों मर गए खत्म कहानी.” बड़ा मजे के मूड में था.
“नहीं, जादू की कहानियां, परियों की कहानियां और भी न जाने क्या-क्या? याद है न मैंने परसों बाल सभा में परियों की कहानी सुनाई थी, कितनी तालियां बजी थीं और मुझे इनाम भी मिला था!” छोटा तालियां बजाने लगा.
कार में आगे बैठे मम्मी-पापा दादी माँ के साथ बच्चों की बातों का मजा ले रहे थे.
“आपकी दादी माँ की जादुई पोटली ने तो मुझे कवि और लेखक ही बना दिया.” पापा की यादें ताजा हो गईं.
“और मुझे व्यावसायिक ब्लॉगर, लोग सीखते हैं और मेरी कमाई होती है!” मम्मी भी पीछे क्यों रहतीं!
“चलो-चलो बच्चो, आ गया स्वामीनारायण मंदिर, उतरो और मेरे पोटली-पुराण को फिर नए अनुभवों-विचारों से सजने दो!
— लीला तिवानी