लिखिए तो सही
लगातार लिखिए,
बार बार लिखिए,
हजार बार लिखिए,
सारा संसार लिखिए,
अपनी पीड़ा,
अपनी खुशी,
अपना रोना,
अपनी हंसी,
कोई गा रहा,
कोई छटपटा रहा,
कोई समस्या सुलझा रहा,
कोई राह में कांटे बिछा रहा,
हर रंग के लिए है कलम,
हर उमंग के लिए है कलम,
सूरज को उजाला नहीं दिखा सकता है,
पर रातों को दीया जला सकता है,
अंधेरों को चीरकर चमक ला सकता है,
निराश लोगों के मन में आस ला सकता है,
मन के बीच उठी दीवार गिरा सकता है,
बस सूखने न पाए स्याही,
आए डराने लाखों सिपाही,
बस लिखे जा,
रहकर अडिग,अटल,
फिर देख कैसे आता है जलजला,
समभाव का बदलाव का,
मन से हटाइये कि
दूध मिलेगा या दही,
पर मित्रों लिखिए तो सही,
लिखिए तो सही।
— राजेन्द्र लाहिरी