कविता

एक पेड़ काटा अगर तो सौ पेड़ है लगाना

मानवता खतरे में पड़ी है यह सबको है समझाना
प्रकृति से खिलवाड़ नही करना पर्यावरण है बचाना
उन्नति के नाम पर जो हमने काट डाले जंगल
एक पेड़ काटा अगर तो सौ पेड़ है लगाना

पेड़ भी काट दिए काट दी छोटी झाड़ियां
मैदान बना डाली वह सुंदर दिखती पहाड़ियां
छाया के लिए ढूंढता फिर रहा कोई घना पेड़
चुकानी तो पड़ेगी तुझे यह सब देनदारियां

लगा दी आग जंगलों में पक्षी घोंसला कहां बनाएं
पानी के लिए मर रहे अपनी तड़फ किसको दिखाएं
अंडों समेत जल गई उन पर बैठी माता
बच्चों संग मां कैसे जल गई यह उन्हें कैसे समझाएं

प्रकृति से छेड़छाड़ का ही यह है परिणाम
हर वर्ष बादल फटते हैं तूफान और बाढ़ हैं आते
गुनाह करने वाला तो कोई और ही होता है
मरते हैं बहुत लोग बिना कसूर सजा हैं पाते

गंदगी हम फैलाते हैं प्लास्टिक हम हैं जलाते
स्वार्थ सिद्धि के लिए जंगलों में आग हैं लगाते
छोटे पौधे पशु पक्षी और जानवर
इस आग की भेंट हैं चढ़ जाते

कारखानों का कचरा सारा दरिया में हैं बहाते
सब्जियों पर केमिकल का छिड़काव कर हैं बेच आते
बीमार कोई हो जाये सेहत की चिंता नहीं दूसरों की
मरता है कोई तो मर जाये हम तो पैसे हैं कमाते

प्रकृति से खिलवाड़ करोगे नहीं रहेंगे जब यह पेड़
धरा गर्म हो जाएगी फिर हो जाएगा उलटफेर
पर्यावरण को नहीं बचाओगे तो नहीं मिलेगी प्राणवायु
स्वच्छ वातावरण नहीं मिलेगा घटती जाएगी आयु

पर्यावरण दिवस नहीं मनाना साल में केवल एक बार
सुरक्षित जीवन जीना है तो मनाइये इसे बारम्बार
अगली पीढ़ी याद करेगी हम सबको
बृक्ष लगा कर करोगे यदि इस धरती का श्रृंगार

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र

Leave a Reply