हमराह
तुम्हारे दामन ने
मेरी आवारगी को दिया है पनाह
मुझे तुम्हारी ही तलाश थी
ओ मेरे हमराह
अब नहीं रहा मै तन्हा
जबसे तुम करने लगी हो
कदम कदम पर मेरी परवाह
तुम गंगा सी
पावन एक नदी हो
तुमसे आ मिला हूँ अब मै
तुमसे जन्मों से
बिछड़ा हुआ था मै
एक प्रवाह
तुम्ही मंजिल हो मेरी
तुम्ही हो अब मेरी राह
मेरे जीवन में
अब शेष नहीं रही
तुमसे मिलकर कोई चाह
तुम्हारे दामन ने
मेरी आवारगी को दिया है पनाह
मुझे तुम्हारी ही तलाश थी
ओ मेरे हमराह
किशोर
बहुत खूब .
वाह !