कहानी

कहानी – सूद की ख़ुशी

घर का दरवाज़ा खोल सुशील अंदर आ गया.. बिजली के स्विच को नीचे की तरफ दबाते ही कमरे में रौशनी फ़ैल गयी.. कमरा भले ही रोशन हो गया हो लेकिन सुशील का मन अभी भी अँधेरे में ही डूबा हुआ था…

अब तक की ज़िन्दगी में उसने कोई गलत काम नहीं किया .. किसी को नुकसान नहीं पहुँचाया मगर इसका उसे क्या सिला मिला . . ज़िन्दगी की जद्दोजहद में उसे उसे वह ख़ुशी नहीं मिली जो हर इंसान को खुश होने के लिए ज़रूरी है.. सोचता रहता की क्या करू की वह ख़ुशी हासिल कर पाऊ.. खुद भी खुश रहू और सबको ख़ुशी दे सकु..अपने खास मित्र मनमोहन के साथ जो उसी की तरह ज़िन्दगी जी रहा था खूब सलाह मशविरा किया था इस हालत से निजात पाने का .

खाना खा कर जैसे ही लेटा दिन भर की थकान ने उसे नींद की आगोश में जाने को विवश कर दिया . .

फिर से दरवाज़ा खुला और वह चल पड़ा एक गुनाह करने.. उसने अपना शिकार चुना वह व्यक्ति जो बहुत खुश था. . सारी खुशियां उसके घर में डेरा डाले हुए थी . .मन ही मन ईर्ष्या के भाव जन्म लेने लगे थे.. खैर उसके घर में चुपके से दाखिल हुआ . . सोच रहा था की पहली बार कोई गुनाह कर रहा है और पकड़ा गया तो क्या हाल होगा.. गुनाह करने से पहले हर अच्छे इंसान को ऐसा ही महसूस होता है..

घर में दाखिल होते ही सावधानी से घर के सदस्यों और सबकी नज़रो से बचता हुआ वह तिजोरी के पास पहुँच गया . . भाग्य से चाबी तिजोरी में ही लगी हुई थी तो ईश्वर को धन्यवाद देने लगा . .

कांपते हाथों से उसने उस तिजोरी में से एक ख़ुशी चुरा ली.. लौटना ही चाहता था लेकिन उसकी अच्छे ने उसके कदम रोक लिए . . फिर से तिजोरी की तरफ मुड़ा और एक ख़ुशी और चुरा ली .. अपने दोस्त के लिए .. सोच रहा था इतनी सारी खुशियों में से एक और चुरा लेगा तो उस व्यक्ति को पता भी नहीं चलेगा और दोस्त भी खुश हो जायेगा . .

वह लौट आया और एक ख़ुशी खुद ने रख ली दूसरी अपने दोस्त को दे दी .. दोनों दोस्त अब खुश हो गए थे .. इस ख़ुशी के माहौल से काम में उसका मन लगने लगा था और दोस्त भी मदद कर रहा था . . अब उसे भी एक के बाद एक ख़ुशी मिलने लगी . . मन ही मन उस व्यक्ति को धन्यवाद देता जिसके घर से सुने ख़ुशी चुराई थी . . उसके मन में आया की अब वह खुश हो गया है तो क्यों का उस गलती या गुनाह का प्रायश्चित कर लिया जाये..

फिर से उस व्यक्ति के घर गया . . उसने उस तिजोरी में दो की जगह तीन खुशियां रख दी . . एक खुद की ख़ुशी के बदले, दूसरी दोस्त की ख़ुशी के बदले और तीसरी दो खुशियों के सूद की ख़ुशी . . यह तीसरी ख़ुशी उसे उसके मन में बसे गुनाह भाव से मुक्ति दे रही थी . . दरवाज़े पर ज़ोर की खड़खड़ाहट से डर गया और इसी डर ने उसकी नींद खोल दी ..

शुरू से अंत तक का सपना याद आते ही मन ही मन मुस्कुरा लिया सुशील . . उसने अपने मित्र की ख़ुशी देकर मदद की, ख़ुशी की चोरी करके जो गुनाह किया सूद समेत लौटा कर ईमानदारी से अपने आप को गुनाह मुक्त किया . . असल खुशियों के साथ लौटाई गयी सूद की एक ख़ुशी उसे ख़ुशी दे रही थी . .

One thought on “कहानी – सूद की ख़ुशी

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कहानी !

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