सामाजिक

अकेलेपन और एकांत में अंतर

जब भी एकांत होता है, तो हम अकेलेपन को एकांत समझ लेते हैं। और तब हम तत्काल अपने अकेलेपन को भरने के लिए कोई उपाय कर लेते हैं। पिक्चर देखने चले जाते हैं, कि रेडियो खोल लेते हैं, कि अखबार पढ़ने लगते हैं। कुछ नहीं सूझता, तो सो जाते हैं, सपने देखने लगते हैं। मगर अपने अकेलेपन को जल्दी से भर लेते हैं। ध्यान रहे, अकेलापन सदा उदासी लाता है, एकांत आनंद लाता है। वे उनके लक्षण हैं।

अगर आप घड़ीभर एकांत में रह जाएं, तो आपका रोआं-रोआं आनंद की पुलक से भर जाएगा। और आप घड़ी भर अकेलेपन में रह जाएं, तो आपका रोआं-रोआं थका और उदास, और कुम्हलाए हुए पत्तों की तरह आप झुक जाएंगे। अकेलेपन में उदासी पकड़ती है, क्योंकि अकेलेपन में दूसरों की याद आती है। और एकांत में आनंद आ जाता है, क्योंकि एकांत में आपका अपने आपसे मिलन होता है। वही आनंद है, और कोई आनंद नहीं है।जब तक आप अपने आपको ठीक तरह से जान नहीं पायेंगे तो एकांत अकेलेपन और त्रासदी में बदल जायेगा।

रमा शर्मा

लेखिका, अध्यापिका, कुकिंग टीचर, तीन कविता संग्रह और एक सांझा लघू कथा संग्रह आ चुके है तीन कविता संग्रहो की संपादिका तीन पत्रिकाओ की प्रवासी संपादिका कविता, लेख , कहानी छपते रहते हैं सह संपादक 'जय विजय'

3 thoughts on “अकेलेपन और एकांत में अंतर

  • विजय कुमार सिंघल

    आपकी बात में वजन है. लेकिन बात अधूरी लगती है. अकेलेपन को एकांत में बदलने के लिए क्या किया जाए यह स्पष्ट नहीं है.

    • अकेलेपन को एकांत में बदलना बहुत सरल है विजय जी, अतीत को भूलकर वर्तमान को खुशी से अपनायें और एकांत में अपने वो सब शौक पूरे करे जो कहीं आपने दबा दिये थे, फिर देखिये अकेलापन कैसे भागता है और एकांत का आनंद कैसे आता है

      • Vijay Kumar Singhal

        ठीक है. यह बात लेख में विस्तार से लिखनी चाहिए थी.

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