कहानी

लम्बी कहानी : मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस (5)

||| रात 2:00 |||

मैं राणा के केबिन में घुसा, वो परेशान था और ड्रिंक्स ले रहा था। मुझे देखकर उसने कहा, “यार मैं परेशान हूँ क्या करूँ, टीटी को बोलूं या क्या करूँ।“  मैंने कहा, “आप बैठिये, मैं आपसे कुछ बताना चाहता हूँ।“ मैंने कहा, “पहले एक ड्रिंक दो यार।“ हम दोनों ने जल्दी से अपने ड्रिंक लिए !

मैंने उससे कहा “देखो एक एक्सीडेंट हो गया है। मार्था ट्रेन से गिर गयी है! “ ये सुनकर उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी, वो चिल्लाने लगा मैंने उसे चुप कराया। मैंने कहा,  “शांत हो जाओ। यदि विश्वास नहीं हो तो मेरे साथी मायकल से पूछ लो, वो भी मेरे साथ सफ़र कर रहा है।“

मायकल का नाम सुनकर वो बुरी तरह चौंका। वो बोला, “कौन मायकल?” मैंने कहा, “मार्था का पहला पति मायकल।“ वो खड़ा हो गया और पागलो की तरह मुझे झकझोरते हुए कहा, “क्या कह रहे हो! मायकल तुम्हारे साथ कैसे हो सकता है। उसे तो मरे हुए एक साल हो गया है !!!”

अब मैं जैसे फ्रीज़ हो गया। मैंने कहा, “क्या कह रहे हो यार, आओ मेरे केबिन में, वो शुरू से मेरे साथ है, हमने साथ में खाना पीना किया है।“ हम दोनों भागते हुए मेरे केबिन में पहुंचे। मैंने दरवाज़ा खोलकर देखा तो, वहां कोई नहीं था। मैंने सीट के नीचे झांककर देखा। वहां कुछ भी नहीं था  न उसका बैग और न ही कोई बोतल। मेरा दिमाग चकरा गया, मैं सर पकड़ कर बैठ गया। राणा मेरे पास खड़ा था वो थर थर काँप रहा था,

मैंने उससे पुछा, “बताओ क्या बात है। क्या हुआ है।“

उसने कहा, “एक साल पहले मैंने और मार्था ने मिलकर मायकल को ज़हर देकर मार डाला था और उसे खुद ही दफनाया था। वो जिंदा कैसे हो सकता था।“

अब मुझे कुछ कुछ समझ आ रहा था। मायकल की आत्मा शुरू से मेरे साथ थी, वो किसी का इन्तजार कर रही थी, ताकि वो मार्था को सजा दे सके। और मैं उसे मिल गया। वो उसके कपड़ो से गंध, वो चुपचाप रहना, उसके वजह से केबिन में बढ़ी हुई ठण्ड ! वो उसका कॉफिन का लास्ट ड्रेस, उसका मुर्दे की तरह कठोर बदन और उसका किसी ओर को दिखाई नहीं देना। मुझे अब सब कुछ समझ में आ रहा था। वो एक शापित आत्मा थी !

हम दोनों डर से कांप रहे थे !

मैं डर तो रहा था पर मैंने शांत होते हुए कहा, “ इसी को सर्किल ऑफ़ लाइफ कहते है राणा। जैसा हम दुसरो के साथ करते है, वैसा ही हमारे साथ होता है। अब मायकल वापस आया हुआ है। उसने ही मार्था को मारा है और मार्था ने अपने किये की सजा पा ली और अब शायद तुम्हारी बारी है।“

ये सुनकर राणा काँपने लगा। उसने कहा, “नहीं नहीं मैं मरना नहीं चाहता, मैं अगले स्टेशन पर ही उतर जाऊँगा, मैं आज के बदले कल ही कोलकत्ता जाऊँगा और अब दोबारा कभी गोवा नहीं जाऊँगा।“

मैंने कुछ नहीं कहा। वो दौड़कर अपने केबिन से बैग को लेकर आया और ट्रेन के दरवाजे के पास खड़ा हो गया। मैंने देखा कोई शहर आ रहा था। वो दरवाजे से सर बाहर निकालकर देखने लगा, इतने में पीछे से मायकल नज़र आया। उसने मुझे देखा और राणा को धक्का दे दिया। राणा भी चीखते हुए गिरा और कट गया। ट्रेन के दोनों अटेंडेट उसकी चीख से उठे। गाडी रोक दी गयी। हल्ला मच गया।

कुछ देर बाद ट्रेन का अटेंडेट आकर मुझसे बोला, “साहेब, वो जो बाजू के केबिन में आदमी था वो अपनी बीबी के साथ गिरकर मर गया है, कैसे कैसे लोग है, बीबी का भी मर्डर किया और खुद को भी मार दिया।“

मैं कांपने लगा. मैंने उसे केबिन से बाहर भेजा और दरवाज़ा बंद कर दिया। मैं डर के मारे दरवाजे से सर टिकाकर अपने आपको शांत करने की कोशिश की। थोडा शांत हुआ तो अपने बेड पर बैठने के लिए मुड़ा। देखा तो मायकल खड़ा था, वो मुस्कराया और फिर उसने मुझसे हाथ मिलाया। मैं डर के मारे कांप रहा था.  मायकल ने मेरे सर पर हाथ फेरा और मुझे सोने के लिए कहा।

मैं बेड पर गिरा और पता नहीं कब सो गया या बेहोश हो गया !

||| सुबह/दोपहर :12:30 |||

कोच अटेंडेट ने मुझे उठाया और कहा, “साहेब, हावड़ा आ रहा है। उठ जाईये।“

मैं उठा, मुंह धोया और दरवाजे पर खड़ा होकर पीछे छूटती दुनिया देखने लगा। मैंने कोच अटेंडेट से न्यूज़पेपर माँगा। मुखपृष्ठ पर ही एक खबर थी- मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस !!!

गीतांजलि एक्सप्रेस धीमे धीमे रुक गयी। मेरा स्टेशन आ गया था। मेरे जेहन में मार्था और राणा आ गए। मायकल की आत्मा ने उन्हें भी उनके स्टेशन पहुंचा दिया था। वो स्टेशन जो कि इस फानी दुनिया का सबसे आखरी स्टेशन होता है और जहाँ हर किसी को देर सबेर पहुंचना ही होता है।

जीवन में इसलिए शायद कभी भी किसी के साथ बुरा नहीं करना चाहिए। ज़िन्दगी अपना रास्ता ढूंढ ही लेती है और सबका हिसाब किताब तो बस यहीं पर होता है। इस फानी दुनिया में इतना समय नहीं  है कि हम अपने जीवन के अच्छे कर्मो को छोड़कर बुरे कर्म करे ! इसलिए कभी भी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए।……यही सब सोचते सोचते मैं स्टेशन के बाहर निकला।

मैं स्टेशन के बाहर निकला और आसमान की ओर देखा. मैंने एक गहरी सांस ली और घर की ओर चल पड़ा !

(समाप्त)

One thought on “लम्बी कहानी : मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस (5)

  • विजय कुमार सिंघल

    कहानी का अंत बहुत रोचक रहा ! हालाँकिर मैं भूत-प्रेतों में विश्वास नहीं करता, परंतु कहानी का यह संदेश सही है कि जो जैसा करता है उसे वैसा ही फल मिलता है ।

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