उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 55)
50. अंतिम प्रबंध
मदुरा, तैलंगाना की विजय के बाद खुशरव शाह वापस देवगिरी पहुँचा। तैलंगाना में उसे वहाँ के सेनापति अनिल महंत का बुझे मन से वध करवाना पड़ा। देवगिरी में मलिक यकलाकी ने विद्रोह कर दिया था उसका खुशरव ने क्रूरतापूर्वक दमन किया। उसके बाद उसने माबर में एक धनी मुस्लिम ख्वाजा तकी का वध करके उसकी सारी संपत्ति लूट ली।
तैलंगाना से खुशरव को पाँच जिले, सौ हाथी, बारह सौ घोड़े और अपार स्वर्ण आभूषण लूट में मिलें और इसी तरह की लूट अन्य जगहों से लेकर खुशरव आन-बान-शान के साथ दिल्ली पहुँचा। सुल्तान मुबारक ने महल से बाहर निकलकर अपने प्रिय वजीर का स्वागत किया और उसी दिन उसने खुशरव के विरुद्ध साजिश करने वालों को हिरासत में लेकर कैदखाने में डाल दिया।
एक दिन उचित अवसर जानकर खुशरव ने सुल्तान से कहा, ”सुल्ताने आला, हमें असीसुद्दीन, जफर खाँ, शहीम और मलिक यकलाकी की बगावत ने सोचने पर मजबूर कर दिया है। हमें लगता है आगे ऐसी बगावत न हो इसके लिए एक अलहदा मजबूत लश्कर की जरूरत है। एक ऐसा लश्कर जिसके बारे में सोचकर ही अमीरों के दिल से बगावत का ख्याल जाता रहे।“
कक्ष में उपस्थित देवलदेवी ने खुशरव शाह की बात का समर्थन करते हुए कहा, ”सुल्ताने आला, इन बगावतों के अलावा सल्तनत को काफिर मंगोलों से भी बहुत खतरा है, हमें लगता है यह लश्कर मगोलों के हमले के वक्त काफी कारगर साबित होगा। वजीरे आला का ख्याल एकदम दुरुस्त है।“
देवलदेवी की बात सुनकर सुल्तान बोला, ”बेगम, सल्तनत की हिफाजत के लिए आपको जो ठीक लगे वह वजीरे आला से मशविरा करके कीजिए, हमें कोई एतराज नहीं।“
खुशरवशाह ”जिल्लेइलाही से एक दरख्वास्त और थी!“
मुबारकशाह ”क्या वजीरे आला? बेखौफ कहिए।“
खुशरवशाह ”मेरे मातहतों को काम-काज के सिलसिले में किसी भी वक्त महल में मुझसे मिलने की इजाजत दी जाए। लश्कर के संगठन के लिए यह जरूरी है।“
खुशरव की बात सुनकर मुबारक ने सवालिया निगाहों से देवलदेवी की ओर देखा, देवलदेवी ने इशारे से समर्थन किया। देवलदेवी की सहमति पाकर सुल्तान मुबारक बोला ”इजाजत है वजीरे आला, आप लश्कर का बंदोबश्त चाक-चौबंद और दुरुस्त कीजिए।“
मुबारक की सहमति मिलते ही देवलदेवी और खुशरव शाह ने एक-दूसरे को विजयी मुस्कान के साथ देखा था।
देवलदेवी, खुशरव शाह (धर्मदेव) ने चालीस हजार घुड़सवारों की एक सेना इकट्ठी की। इस सेना के अधिकतर सैनिक देवलदेवी, खुशरव और हिमासुद्दीन की जन्मभूमि गुजरात से लाए गए थे। यह सब सैनिक हिंदू धर्म की पुनस्र्थापना करने की शपथ ले चुके थे। इस तरह उन तीनों ने स्वधर्म की पुनस्र्थापना का पूरा प्रबंध कर लिया और उचित अवसर की राह देखने लगे।