स्मृति के पंख – 8
कुछ अरसा बाद गढ़ी कपूरा में भाई श्रीराम (बहन गोरज के पति) का कोई खास काम भी न था। बहन गोरज ने फैसला किया मरदान जाते हैं। एक तो बहनजी को सहारा मिल जायेगा, दूसरा काम शायद कुछ अच्छा हो जाए। इस तरह भाई श्रीराम और गोरज भी मरदान आ गए और एक ही मकान में दोनों बहनें रहने लगीं। रामलाल को जब स्कूल दाखिल कराया, तो उसके बाद उसकी हर चीज का मैं पूरा ध्यान रखता। कपड़े, बूट, कोट, स्कूल की किताबें। कोई चीज उसकी कम न हो और अगर उसे कोई जरूरत होती तो वह मांगता भी मुझसे। मुझे पिक्चर देखने का बहुत शौक था। जब रामलाल थोड़ा बड़ा हो गया, तो रात भी मरदान रहता और रामलाल को भी पिक्चर दिखाने ले जाता। इस तरह गोरज बहन का लड़का हरभजन लाल, उसका भी फिर मुझे वैसे ही ध्यान रहने लगा, कोई चीज उसकी भी कम न हो। एक दिन गुरु देवकीनन्दनजी मुझे नदी किनारे ले गये और कहने लगे बिहारीलाल गढ़ीकपूरा वाले की लड़की है, घर खानदान ठीक है, उम्र रंग रूप और लड़की घर के कामकाज में समझदार है। उन्होंने तेरे लिए बात की है। घर आई देवी का निरादर नहीं किया जाता, मुझे विश्वास है तुम हमारे फैसला पर इत्तिफाक करोगे। मैं गुरुजी के सामने कैसे बोल सकता था। एक तो उम्र इतनी छोटी 16-17 साल की, दूसरा शादी के मसले पर मैं गुरुजी के सामने बोल नहीं सका। इतना कहा कि यह आप बुजुर्गों का काम है, लड़की मैंने देखी है, जैसी आपकी और पिताजी की इच्छा हो। उस जमाने में लड़की वालों को फिक्र नहीं होता था कि लड़की जवान हो गई है। लड़के वाले जिस घर लड़की जवान होती उस घर आना जाना शुरू कर देते। लड़की वाले फिर फैसला करते रिश्ता करना है या नहीं और कहाँ करना है। जहाँ मन बन जाता वहाँ हां कर देते। जब रिश्ता हो जाता, तो बाकी लड़के वाले आने जाने से तब रुकते। हमारे घर में ऐसा नहीं हुआ था। भ्राताजी का रिश्ता भी लड़की वालों ने हमें खुद कहा था और मेरा भी ऐसे हो रहा था कि लड़के को घर बैठे रिश्ता लड़की वालों खुद आकर दिया और इस तरह मेरी मंगनी हो गई।
हमारी दुकान के सामने गली में एक बेवा का घर था। उसका खाविन्द जंगे अजीम में मारा गया था। फौज में हवलदार था। उसकी 4 लड़कियाँ थीं। तीन की शादी हो चुकी थी। छोटी का नाम सकीना था। उम्र में साल 6 महीने मुझसे बड़ी होगी। पहले हम गली में इकट्ठे खेलते भी रहते, लेकिन अब वह एक पर्दादार खातून थी। कभी कुछ सामान घर का जरूरत हो, तो मुझसे मंगवा लिया करती। जब भी मैं सकीना को सामान दे जाता, तो वह मुझे बहुत अच्छी और सुन्दर लगती। इतनी प्यारी बन गई थी। मैं उसे सामान देते वक्त देखता ही रहता। वो भी खुशी का एहसास करती। एक दिन उसकी मां ने मुझे कहा कि ‘मेरे तीनों जँवाई मेरी दौलत पर नजर रखते हैं। एक तो उसे पेंशन मिलती थी, दूसरा पंजाब में जमीन मिली थी, जिसकी आमदनी उसे आती थी। मैं बच्चों को बहुत कुछ देती हूँ, फिर भी उनका पेट नहीं भरता। मेरे पास रुपया है और मुझे डर है, वो रुपया मुझसे खराब न हो जाए। तुम रुपया अपने पास रख लो, जब कभी जरूरत होगी मैं ले लिया करूंगी।’ मुझे क्या इनकार हो सकता था। पहली दफा उसने चांदी के रुपये विक्टोरिया और जार्ज छाप दिये। उन दिनों ऐसी अफवाह थी कि यह पुराने सिक्के वाले रुपये बंद होने वाले हैं। मैंने समझा इस तरीके से बदलवाती है, लेकिन फिर उसने 100-100 के नोट भी दे दिये।
ऐसे भी कई दफा होता, जब मैं सामान लेकर जाता, तो सकीना नमाज पढ़ रही होती और मुसल्ले पर बैठी खुदा से दुआ मांगती। उस वक्त वह सफेद कपड़ो में होती। मुझे लगता जैसे कोई हूर आसमान से फर्श पर उतर आई हो। फिर कभी हिसाब रखने के लिए और कभी डाक लिखने के लिए बुला लेती। इस तरह सकीना के साथ आधा घण्टा इकट्ठा बैठने का मौका मिल जाता। सकीना जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही नेकसीरत थी। तीसरा, उसकी जबान बहुत मीठी थी। डाक या हिसाब तो बरायनाम था, वो भी मेरे साथ बैठक चाहती थी। एक दिन उसने दो कप चाय बनाकर रख दी और कहने लगी मैंने अपने हाथ से बनाई है। मेरे साथ पी लो, मुझे अच्छा लगेगा। उस वक्त हिन्दू लोग मुसलमान के घर का या हाथ का बना खाना नहीं खाते थे। मैंने कप उठाया और उसे भी कहा उठा लो। उसे इतनी सी बात बड़ी खुशी हुई कि मैंने चाय पी ली। कहने लगी मुझे उम्मीद थी कि तुम न नहीं करोगे। एक बात यह तो मैं समझती नहीं कि मोहब्बत कैसे होती है, लेकिन तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो। क्या मैं आपको प्यारी नहीं लगती। मैंने कहा तुम मुझे बहुत अच्छी और प्यारी लगती हो, लेकिन मैं एक हिन्दू लड़का और तुम एक मुसलमान। ऐसा सोचना भी मुश्किल लगता है और उसने मुझे उठकर गले से लगा लिया और कहा मुश्किल क्या है, मैं जानती हूँ। हमारी शादी का सवाल पैदा नहीं होता। मैं शादी करना भी नहीं चाहती। मैंने अपनी तीन बहनों की हालत देख ली है। जिन्दगी बरबाद करनी हो, तो इन लोगों से शादी कर लो। मैं इन लोगों से नफरत करती हूँ। मुझे तो ऐसे लगते हैं जैसे इंसानी लिबास में हैवान हो। देखो कपूर खान (वह मुझे इसी नाम से पुकारती थी) हम एक दूसरे को प्यार करते हैं। मैं खुदा परस्त लड़की हूँ, 5 वक्त की नमाज, महीना भर के रोजे रखती हूँ। कुरान शरीफ की तलावत करती हूँ। अगर खुदा ने हमारे दिल में मोहब्बत का जज्बा पैदा किया, तो यह उसकी देन है। हम कोई गुनाह नहीं करेंगे लेकिन प्यार करेंगे। मैंने कहा- ‘सकीना यह जज्बा छुप नहीं सकता। मुझे तो बहुत डर अपने बाप का है। उनकी गाँव में बड़ी इज्जत है। कोई भी उनसे पर्दा नहीं करता। अगर उन्हें पता चल गया कि मैं किसी मुसलमान लड़की से मोहब्बत करता हूँ, तो वे बर्दाश्त नहीं करेंगे।’
सकीना बोली- ‘डरो मत ऐसी नौबत कभी नहीं आयेगी। मेरी बातें सुन लो। मैं शादी नहीं करूंगी, तुम शादी कर सकते हो। मैं तुम्हारे खानदान और तुम्हारे बाप की बहुत इज्जत करती हूँ। उनकी शान पर कोई बट्टा न आने दूंगी। आम तौर पर ऐसे ही होता है। कोई मुसलमान लड़की किसी हिन्दू लड़के के साथ प्रेम संबंध में पकड़ी जाए, तो हिन्दू लड़के को इस्लाम कबूल करना पड़ता है। अगर वो ऐसा नहीं करेगा, तो उसकी मौत यकीनी है। मैं ऐसा कभी नहीं सोचती। मैं तो खुदा से दुआ मांगती हूँ तुम फूलते फलते रहो और मैं तुम्हें हंसता खेलता देखती रहूँ। मैंने माँ को खुद कहा है डाक या हिसाब रखने का। वैसे तो तुम्हें बुलाने का यह एक बहाना है। मैं अगर तुमसे मोहब्बत करती हूँ, तो तुम भी मुझे करते हो। भरोसा रखो कुछ भी नहीं होगा। तुम्हारे खानदान पर कोई बदनामी वाली बात मेरी तरफ से नहीं आएगी। खुदा न ख्वास्ता अगर ऐसा मौका आया भी तो हम इज्जत को नीलाम नहीं करेंगे। मर जायेंगे और मरेंगे भी साथ-साथ। खुदा के हजूर में मैं आपसे ऐसा वादा करती हूँ।’
एक दफा एक शादी पर चन्द बाराती मुसलमान भी साथ थे हमारी दुकान पर बैठे। उन्होंने ठण्डा पानी मांगा। बर्फ तो होती न थी कुएं का पानी काफी ठण्डा व मीठा था सकीना के घर का। मैं पानी लेने चला गया। उसने बाल्टी भरकर निकाली तो उसे शक हुआ कि उसमें कीड़े हैं, उसने पतीले पर अपना दुपट्टा रखकर पानी छान लिया। लेकिन जब सर उठाया तो कहने लगी- ‘साथ के कोठे पर छत पर तुम्हारी सास बैठी है और हमें देख रही है। मुझे तो उसमें कोई बुराई नजर नहीं आई, लेकिन वो लड़की की मां है, जरूर उसके दिल को कोई ठेस न लगी हो।’ और उसकी बात ठीक थी मेरी सास को वो दृश्य देखने के बाद बड़ी चिन्ता थी, जब तक मेरी शादी नहीं हुई। मेरे जीवन का वो जमाना खुशगवार था। सफर शुरू करते ही एक प्यार करने वाला हसीन साथी मिला, जिसे यह भी मालूम था कि हमारी सफर का कोई मुकाम नहीं है, न मंजिल। तारीक वादियों में भी खो सकते हैं और फिर एक पड़ाव पर हमने अलग भी होना है। फिर भी कल की चिन्ता किए बगैर आज के खुशगवार लम्हों को ज्यादा से ज्यादा हसीन बनाकर आगे बढ़ रहे थे।
पूरी क़िस्त पढ़ी। घटनाएँ सजीव हो उठी हैं। धन्यवाद।
बहुत अच्छी लगी यह कथा , कितना पवित्र प्रेम था . आज का कोई लड़का होता तो किया करता यह सोचने की जरुरत नहीं है लेकिन जो लेखक ने लिखा है उस से उस की साफ़ आत्मा की झलक दिखाई देती है.
बहुत पवित्र प्रेम कथा !