कविता

लाज़वाब

 

मैं मानता हूँ
तुम्हारे घर के आँगन के
गमले में
जैसे मैं हूँ
एक खिला हुआ गुलाब

पर तुम कहती हो
तुम्हारे मन के आकाश में
सूर्योदय का हूँ मैं
सुनहरा आफताब

तुम्हें मैं
निरंतर पढ़ रहा हूँ
लेकिन जिसका अंत न हो
ऐसी हो तुम एक किताब
सीने में रखकर तुम्हें
सो जाया करता हूँ
ताकि नींद में संग लेकर
आये तुम्हें ख़्वाब

तुमसे मैं प्रतिदिन
करता आ रहा हूँ
अपने प्रेम का इजहार
पर नहीं मिला है मुझे
तुमसे
आज तक कोई जवाब

फिर भी
मेरी दृष्टी में
तुम खूबसूरत हो
और हो लाज़वाब

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

One thought on “लाज़वाब

  • विजय कुमार सिंघल

    लाजबाब कविता !

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